॥ अथ जय माल वर्णन॥
(२)
सावन शुक्ल पक्ष तृतिया को झूला झूल्यो सीता राम।
इच्छा भई किशोरी जी के झूलैं संग मेरे अभिराम।
अन्तर्यामी जानि गये प्रभु घट घट व्यापक राम।
गरुड़ से कह्यो लै आओ मणि गिरि जो है पड़ा अकाम।
लायो गरुड़ मणिन का पर्वत उत्तर खण्ड मुकाम।५।
मानुष पक्षी पशुन कि गति नहिं जहाँ रह्यो विश्राम।
श्री अवध में लाइ पधारय्यौ धन्य धन्य यह धाम।
तब से नाम पड़ा मणि पर्वत बचन मानिये आम।
बृक्ष कदम्ब हिंडोला गिरि पर प्रकट्यौ शुभग सकाम।
कोटिन भानु समान उजेरिया छाई निशिबासर तेहि ठाम।१०।
सब के मातु पिता तहँ राजैं कहत जिन्हैं गुण ग्राम।
ढारैं स्वयं आप ही जारी प्रभु इच्छा बसु याम।
सखा सखिन का काम नहीं कछु केवल श्री सिया बाम।
मर्यादा पुरुषोत्तम मंगल मूरति हैं श्री राम।
झाँकी की छबि अद्भुद सोहै अगणित लज्जित काम।१५।
सुर मुनि चढ़ैं बिमानन निरखैं बर्षैं सुमन तमाम।
पुरवासिन रानिन दशरथ को सुर मुनि करैं प्रणाम।
भाग्य सराहैं बलि बलि जावैं हम सब बड़े निकाम।
इन सबको नित दर्शन देते करुणानिधि घनश्याम।
प्रेम भाव के भूखे स्वामी भजन करै निष्काम।२०।
नाना चरित मनोहर देखै सकै कौन तेहि थाम।
कृष्ण दास कहैं हर दम दर्शन जपै निरन्तर नाम।२२।
इति
जय श्री सीता राम
१२-६-५८
१२ जून १९५८