२८२ ॥ श्री बाबा चाली दास जी, मेहतर ॥
(कनवाखेरा, सीतापुर)
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जीवन चरित्र
जीवनी:
श्री १०८ श्री चालीदास जी मेहतर, मुकाम कनवा खेरा, पोस्ट व जिला सीतापुर, सरायन नदी के पार जंगल में, सड़क के पूरब समाधी है (एक कोस से ज़्यादा दक्षिण तरफ है)। इनको शरीर त्याग किये ४८ वर्ष ९ माह हुए। इनके दर्शन को हम सीतापुर से बुधवार कार्तिक बदी ३-४ संबत २०२९ (१९७२ ईस्वी) को सुबह साढ़े नौ बजे मोटर से गये थे। पुल टूट गया है, इसलिए मोटर सड़क पर छोड़ दी और हम लोग नाव पर गये और वापस आये। जाते समय एक ऊँची जगह पर उनके गुरु की समाधि पड़ती है, वहीं उनके एक चेले की भी है। वहाँ भी दो साधू मेहतर रहते हैं। वहाँ दो जगह कोठरी बनी हैं। फिर नदी पर ऊँचे पर एक सोनार का फार्म है। फार्म में एक बूढ़ा मुराऊ रहता है। राम कोट के जमींदारों से लिया है। उसी के बीच बाबा चालीदास की समाधी बनी है। एक कोठरी पक्की बनी है, किबाड़ लगे हैं। उसमें जाकर फेरी लगाया, कुछ देर खड़े रहे, फिर उनके चेले की समाधी पर फेरी लगाया। चाली जी के चेले का नाम मन्नी राम था।
वहाँ चार आदमी रहते हैं। एक आदमी आया एक कुरसी लाया। उस पर बैठे संग में उमाशंकर अवध बिहारी, बृज बिहारी, बृज बिहारी का लड़का अरुन जो मोटर चलाता था संग में थे। सब लोग कुछ समय वहाँ रहे फिर नदी पर आये। नाव से उतर कर बाबा के गुरु की समाधी पर फेरी लगाकर और कुछ देर रुक कर ११ बजे लोहार बाग घर पर आ गये। पहले चाली का शरीर छूटा, उसके बाद उनके चेले का छूटा, फिर गुरु का छूटा, फिर चाली के गुरु भाई का छूटा। बाबा चाली दास जंगल में नदी के किनारे पर रहते थे। जब बहुत बाढ़ आई तो सबके कहने से ऊँचे पर चले गये। शरीर छूटे के बाद जब समाधि बन गई तब फिर बाढ़ आई। पाँच हाथ ऊँचे दीवार तक पानी चढ़ गया। कोठरी में भर गया, काफी ऊँचाई तक पानी पहुँच गया था। कई लोग पुराने हैं वे पूछने पर बताते थे।
चाली बाबा एक छोटी डलिया में बताशे धरे बाँटा करते थे। वह चुकते नहीं थे। यह बात सब जानते थे और कुछ नहीं जानते थे। चाली ने १८ की उम्र से २८ की उम्र तक फ़ौज में नौकरी की। झाड़ू-बुहारु का काम था। सब खुश रहते थे। उनको वैराग्य हो गया। अपने आप भोजन एक बार बनाते थे। दोनों समय थोड़ा थोड़ा खाते थे। ५०रु० माहवार वेतन मिलता था। थोड़े में बसर करते बाकी गरीबों को बाँट देते थे। काशी में राजा हरिश्चन्द्र के समय कलुवा भंगी था। उनके परिवार के थे। छोटे पर के सदाचारी थे। चारों धाम घूमे फिर सीतापुर आये। महमूदशाह मेहतर, कनवाखेरा नदी के किनारे झोपड़ी में स्त्री पुरुष रहते थे। एक झोंपड़ी में गाय रहती थी। उनसे कहा बाबा हमें भी कुछ बताओ। वे बोले हम तो राम राम करते हैं। बस चाली जुट गये।
चाली दास जी नौकरी छोड़कर जंगल के करीब रहने लगे। वहाँ बैठ गये और राम राम करने लगे। पहिले दाहिनी आँख उठी तो कहा 'हम राम राम नहीं छोड़ैंगे, आँख चाहे फूट जाय'। आँख थोड़े दिन में फूट गई। फिर बाँई आँख उठी तो चाली दास ने कहा 'यह भी फूट जाय हम राम राम नहीं छोड़ेंगे'। वह भी फूट गई। फिर थोड़े दिन में चाली दास जी की दोनों हिय की आँखें खुल गईं। तब चाली ने डिप्टी कमिश्नर से कहा 'एक शालिक राम जी की मूर्ति मंगा दो।' तब साहब ने किसी पंडित से कह कर मंगा दिया था। चाली दास उसका पूजन करते थे। तब डिप्टी कमिश्नर ने सड़क बनवा दी। रहने की जगह बन गई। बाजे टाँग दिये गये। भगवान के चित्र लगा दिये गये।
इतवार को हिन्दू, मुसलमान अंग्रेज जाने लगे। चालीदास पहले सीता राम कहते थे जो वहाँ आता था। एक बार थोड़ा खाते थे। चौदह साल राम राम किया। एक दिन पंडित से कहा 'आज शरीर छोड़ेंगे हमें गीता सुना दो'। चाली बाहर बैठ गये। अर्जुन गीता सुनकर शरीर छोड़ दिया। चाली दास की समाधि बनी है। उनकी दशा विचित्र हो गई थी जो वर्णन में नहीं आ सकती। जो कुछ थोड़ा हमें हाल में बताया गया है वह हमने लिखा है। हमें उनकी बातों में ऐसी मस्ती आ गई कि आँसू चलने लगे। फिर वहाँ से आकर थोड़ा लिखा। बहुत बिस्तार से बताया था। हमारा हाल भी कुछ बताया। नाभा जी के समय का कुछ हाल बताया था। उन्होंने कहा 'तुम्हारा काम हो गया, तुम पाप पुण्य से अलग हो गये। मान बड़ाई नरक की निशानी है। समय भी करीब आ गया है। जहाँ मान बड़ाई है वहाँ आकर लोग समय बरबाद करते हैं। भजन-ध्यान सुमिरन की यह बड़ी बाधा है। समय स्वाँस अनमोल पाकर खाली न छोड़ना चाहिए। समय आकर फिर नहीं मिलता'। जहाँ उनकी समाधि है उस से कुछ दूर नजर अली शाह की समाधि है। बसन्त को मेला लगता है। वहाँ भी एक हठयोगी छ: हजार वर्ष के रहते हैं। हम सब बातैं लिख नहीं सकते। थोड़ा लिखा है। कासिमपुर गाँव नदी पार है। वहाँ समाधि है और एक बाग है।
हम १८ की उमर में वहाँ दो बार गये हैं।