॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
खड़े होवैं तन मन हर्षाय। वस्त्र बदलैं तब श्री रघुराय॥
लखन बदलैं अपनौ तब भाय। राम के बसन धोय लें धाय॥
फेरि अपनौ धोवैं तब जाय। दिब्य वै बलकल बसन सोहाय॥
दीन नन्दन बन अति सुखदाय। फटैं नहि मैल होंय चमकाय।१४८०।
जलौ नहि बेधै है वैसाय। जक्त की मर्यादा हित आय॥
धोवते बिधि निषेद को भाय। चलैं श्री राम लखन तब भाय॥
आय सेना में पहुँचैं आय। उदधि तब पीछे फिरि चलि जाय॥
धार में रतन भरे हर्षाय। दोऊ कर साधे खड़ा है भाय॥
दहिन पग ऊपर लेय उठाय। कहै हरि से सुनिये सुखदाय।१४९०।
भेंट यह लीजै दीन की भाय। सुफल मम तन मन नैन हैं भाय॥
पवन सुत कह्यौ रहै गुनगाय। सुनैं यह बैन जगत सुखदाय॥
दया के सागर हैं रघुराय। कहैं लछिमन से सुनिये भाय॥
लेहु लै भेंट दीन दुख जाय। लेंय लै लखन कहैं समुझाय॥
सुनौ तुम उदधि बचन चित लाय। ज़ोर से शब्द न होवै भाय।१५००।
रहै जब तक यहँ पर कटकाय। भजन में बिघन कपिन ऋक्षाय॥
होय तो हम से सहा न जाय। एक ही बाण ते देंव सुखाय॥
न मानौं बचन फेरि मैं भाय। कहै तब उदधि दीन बचनाय॥
दिह्यौ अज्ञा सो करब उपाय। शीश धरि लीन बचन हर्षाय॥
आप के हम अधीन हैं भाय। जिआओ मारो तुम सुखदाय।१५१०।
देंह औ प्राण तुम्हारो आय। लखन यह बैन सुनैं हर्षाय॥
उदधि को उर में लेंय लगाय। कहैं तुम जाव आवरण भाय॥
करैं हम सुमिरन हरि उरलाय। होय निश्चिन्त कटक दोउ भाय॥
आय तब चण्डी देवी जाँय। मिठाई भाँति भाँति सुखदाय॥
कन्द फल मूल व मेवा लाय। संग में बीर योगिनी भाय।१५२०।
धरे सब शिरन पै मन हर्षाय। खड़े होवैं दोनों सुखदाय॥
करैं परनाम चरन शिर नाय। देंय आर्शीबाद तब माय॥
विजय होवै तुम्हरी रघुराय। थार सब प्रभु ढिग धरि दें आय॥
कहैं दोउ भाई मन हर्षाय। मातु बड़ि किरपा कीन्हेउ आय॥
बिना माता के कौन सहाय। करैं घर बन बिदैश में आय।१५३०।
नहीं निशि वासर भूलैं माय। कहैं चण्डी तन मन हर्षाय॥
रोज़ सब वस्तु देव पठवाय। लड़ाई जब तक हो रघुराय॥
हमारे तरफ से भोजन आय। चलत में छाती लेंय लगाय॥
राम औ लखन को चण्डी माय। देंय सब कटक को आशिषाय॥
जीतिहौ सब रावण दुखदाय। प्रेम से पावैं सब हर्षाय।१५४०।
स्वाद अति ही बिचित्र सुखदाय। आय सामुद्र कहैं रघुराय॥
संदेशा सुनिये चित्त लगाय। कह्यौ है राघव मच्छ सुनाय॥
सुनाओ मेरी बिन्ती जाय। राति औ दिवस रहौं गुन गाय॥
दर्श के खातिर मन ललचाय। ध्यान में दर्शऩ होत हैं भाय॥
आप अब साक्षात गये आय। कृपा करि हुकुम देंय सुखदाय।१५५०।
आप जल ऊपर दर्शन पाय। होय तब मन नेत्रन सुफ़लाय॥
निरखि छबि श्याम सुहावन भाय। सेतु मेरे तन का ह्वै जाय॥
उतरि जाँय कटक सहित सुखदाय। कृपा निधि के परताप से भाय॥
परा मैं रहौं जलै पर आय। नहीं ताकत है मेरी भाय॥
नाम प्रभुहीं के बल कछु भाय। प्राण तन मन सब हरि का आय।१५६०।
और दूसर को है सुखदाय। सुनै प्रभु बचन मच्छ के भाय॥
कहैं धनि धन्य भक्त मच्छाय। दर्श हम उनको देवैं जाय॥
करैं इच्छा पूरी हर्षाय। आइहैं इसी देह से भाय॥
कह्यौ जब अर्द्ध रात्रि ह्वै जाय। अगर जो वै ऊपर चलि आय॥
जारी........