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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

गई कहुँ चली पता नहिं पाय। लै आयन जब से सिया उठाय॥

तभी से सुधि बुधि गई हेराय। राम तो रमें हैं सब में भाय॥

दूसरे राम कहाँ ते आय। सदा निर्गुण निर्लेप कहाय।९१०।

 

कामना राम में कहाँ ते आय। पढ़ा नहि लिखा मूर्ख तू आय।

बतकही सिखि लीन्हें कहुँ जाय। कहैं हनुमान सुनो दुखदाय॥

ऋक्ष औ बानर तुम्हें हराय। बालि को जानत हौ तुम भाय॥

रह्यौ कखरी छ महीना जाय। कहाँ बल गवा रहा तब भाय॥

बोलि नहिं सक्यो बड़े बलदाय। समाधि में रह्यौ कि ध्यान में भाय।९२०।

 

कि डर से स्वाँसा लिहेव चढ़ाय॥ कहैं मसला सब जग में भाय॥

जौन गरजे सो बरसि न पाय। लड़ै को ऋक्ष गणन ते भाय॥

तुम्हारी सेना देखि पराय। अकेले जाम्वन्त संग भाय॥

नहीं कोइ सन्मुख में ठहराय। बालि सुत अंगद जब चलि आय॥

देखिहौ वा के बल को भाय। पूछिये मेघनाद ते भाय।९३०।

 

कीन्ह अति युद्ध मेरे संग आय। नहीं कोइ चोट मेरे तन आय॥

चोट उनके तन शालै भाय। बुलाय के देंय छुऔ तो भाय॥

छुअत ही मूँह पीला पड़ि जाय। शरम के मारे कहत न भाय॥

झूठ ही इन्द्र जीत कहवाय। जीति जो इन्द्रिन लेवै भाय॥

उसै को जग में सकै हराय। भजन में युद्ध में बल अधिकाय।९४०।

 

होय तेहि अंग बज्र सम भाय। इन्द्र अपसरन में परि के भाय॥

दीन सब तन मन अपन गंवाय। सिपाही बिषय भोग के भाय॥

कहावैं इन्द्र औ जल बरसाय। पड़ै कोइ उनपर आफ़त आय॥

जाय हरि के ढिग रोवैं जाय। दया आवै बिष्णु के भाय॥

काम उनका तब सब बनि जाय। शम्भु के सेवक तुम कहवाय।९५०।

 

इसी से बिष्णु न बोलैं भाय। एकता बिष्णु व शम्भु की भाय॥

जानते हम कछु हैं सुखदाय। लै आय मेघनाद जो भाय॥

शेष की सुलोचना कन्याय। नाग थे लड़े कौन शस्त्राय ॥

बताओ हमको तुम समुझाय। परय्यौ संग्राम नहीं कहुँ भाय॥

रह्यौ गल मुंदरी खूब बजाय। अरे मति मन्द अभागे राय।९६०।

 

रहै नहि धन बल यह तन जाय। देर मोहिं जाने की है राय॥

कहत ही प्रभु चढ़ि आवैं धाय। किहेव तुम समर लखब हम भाय॥

काल के काल श्री रघुराय। मरैं पर हो जब चींटी भाय॥

देंय हरि वाके पंख जमाय। खता कछु तुमरी है नहिं भाय॥

समय जैसा बुद्धी वैसाय। दशानन दसौं दिसन ते आय।९७०।

 

तुम्हैं अब लीन अँधेरिया छाय। परत है यासे नहीं देखाय॥

नैन धोखे के बने हैं भाय। जानकी जगत मातु को लाय॥

जान की कुशल चहत हौ भाय। न बचिहौ कहूँ पै जाइ के भाय॥

कहौं मैं सत्य तुम्हैं समुझाय। सुनै यह बैन दशानन राय॥

क्रोध में देही सब कपि जाय। कहै रावण तब अति रिसिआय।९८०।

 

इसै अब जान से मारो भाय। बाँटि के रत्ती रत्ती भाय॥

धरौ मुख में जहँ तक अटि जाय। रहै हड्डी तक एक न पाय॥

पीसि दशन ते लीलेउ भाय। चिन्ह कहुँ तनिक रहै जो भाय॥

बधब हम तुम सबको रिसिआय। सभासद बहुत रहैं तहँ भाय॥

कहैं रावण से बैन सुनाय। दूत कहुँ मारा जाय न भाय।९९०।

 

बात यह युगुन चलि आय। दण्ड कछु दै दीजै मन भाय॥

कहै नहिं कहूँ भागि बनि जाय। सुनत रावण अति हिय हर्षाय॥

ठीक सब कह्यौ बात सुखदाय। बिचारौ सब मिलि जौन उपाय॥

वही होवै क्यों देर लगाय। बिभीषण कहैं सुनो बड़भाय॥

बात एक हमरे उर में आय। पूँछ में जीण बसन बँधवाय।१०००।

जारी........