॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
लाय कै तुरतै देवैं आय। शोच करि उर में लेंय लगाय॥
बोल कछु मुख से कढ़ै न भाय। कहैं सुग्रीब सुनो सुखदाय।५३०।
शोच काहे को करत हौ भाय। काज एक करो हमारो भाय॥
देंय हम सिया को पता लगाय। सुनत ही राम कहैं हर्षाय॥
कहौ सुग्रीब काज का भाय। देंय सब हाल अपन बतलाय॥
सुनैं प्रभु कहैं क्रोध करि भाय। एक ही बाण से देंव गिराय॥
सकैं नहिं ब्रह्मा शम्भु बचाय। कहैं सुग्रीब सुनो रघुराय।५४०।
परीक्षा हमैं दिखाओ भाय। पड़ै परतीति मेरे मन आय॥
करौं सेवकाई तन मन लाय। कहैं प्रभु कहौं करैं तो भाय॥
होय परतीत जौन से आय। जाय के सप्त ताड़ दिखराय॥
कहैं प्रभु एकै बार दहाय। मारिहै बालि क सोई भाय॥
नहीं तो मोहिं प्रतीत न आय। सुनत प्रभु देवैं बाण चलाय।५५०।
गिरैं एक दम सातौं अरराय। होय सुग्रीब खुशी अति भाय॥
परै चरनन पर उठा न जाय। उठाय के प्रभु लेवैं उर लाय॥
मित्र कहि बार बार हर्षाय। कहैं प्रभु जावो बालि गृह भाय॥
यहाँ हम खड़े बिटप तर भाय। जाँय सुग्रीब डेरातै भाय॥
निरखि के दौरे शोर मचाय। बिकल करि सुग्रीवै दे आय।५६०।
भागि करि आवै हरि ढिग भाय। देंय एक सुमन माल रघुराय॥
कहैं हम तुम्हैं चीन्ह नहिं पाय। दोऊ जन एकै रंग हौ भाय॥
जाव अबकी हम करब उपाय। चलैं सुग्रीब भिरैं फिरि जाय॥
पकड़ एकै जस हो दुखदाय। बिटप के ओट से श्री रघुराय॥
हिये में मारैं शर कसि भाय। लागतै तुरत पार ह्वै जाय।५७०।
गिरै वह बिकल मही पर भाय। आय शर तरकस में घुसि जाय॥
मन्न प्रभाव मानिये भाय। मनै मन सुमिरै श्री सुखदाय॥
राम तब जाँय पास में धांय। लखत ही करुणा उर में आय॥
कहैं तब बालि सुनो रघुराय। बध्यौ कौने कारण मोहिं भाय॥
कहैं प्रभु सुनिये मन चित लाय। नीति त्यागे कर फल यह आय।५८०।
बालि कहैं जानि गयन हम भाय। सिया हरि रावण लै गयो भाय॥
कार्य्य हित सुग्रीवहिं मित्राय। आप की अर्द्धाङ्गी सिय आय॥
हाल हमसे जो कहतेव भाय। देखतेव बल मेरा हर्षाय॥
मारि सब निश्चर रावण भाय। सिया को देतेंव तुम्हैं गहाय॥
कौन था काम बड़ा रघुराय। लंक को मूली के सम भाय।५९०।
उखारि समुद्र में डरतेंव धाय। सुनैं यह बचन राम रघुराय॥
बीर रस भरे बालि के भाय। कहैं प्रभु तुमको देंय जिआय॥
राज्य कीजै पंपा पुर जाय। अमर औ अचल करौं सुनु भाय॥
फेरि तुमको कोइ मारि न पाय। कहैं तब बालि सुनो सुखदाय॥
मुनी बहु बिधि ते करैं उपाय। दरश कहुँ मुशिकल से हो भाय।६००।
अन्त में रूप न सन्मुख आय। सामने खड़े आप मम आय॥
निरखि कै शोभा हिय हर्षाय। अन्त में नाम आप का भाय।
कढ़ै जो मुख से भव तरि जाय। कहत हौ प्राण राखिये भाय॥
हमै अस समय न मिलिहै आय। तयारी मेरी है रघुराय॥
सिंहासन आवत परत दिखाय। टहलुआ अंगद लिहेव बनाय।६१०।
राज सुग्रीव को दीन्हेव भाय। चलै कहि राम नाम सुखदाय॥
चतुर्भुज रूप हिये हर्षाय। करै रोदन तारा बिलखाय॥
खींचि माया प्रभु दें समुझाय। परै अंगद प्रभु चरनन धाय॥
उठाय के हरि उर लेंय लगाय। राज सुग्रीव को दें रघुराय॥
कहैं अंगद से बचन सुनाय। रहौ तुम सतयुग तक हर्षाय।६२०।
जारी........