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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

आइहौ फिर मेरे पुर भाय। कहैं सुग्रीव से श्री रघुराय॥

सिया को पता लगावो भाय। लेंय सुग्रीव कपिन बोलवाय॥

कहैं सब उनसे हाल सुनाय। जाँय सब दिशि बानर बहु धाय॥

खोजि आवैं कहुँ पता न पाय। कहैं तब जाम्ब वन्त हर्षाय॥

बिना हनुमान कौन सुधि लाय। देंय मुंदरी तब श्री रघुराय।६३०।

 

कहैं यह सिया को दीन्हेव जाय। लेन सुधि पवन तनय तहँ जाँय॥

जाय लंका में पहुँचैं जाय। घूमि सब भवन भवन लें जाय॥

लेंय तहँ बहुत रूप धरि भाय। जौन जैसे पौढ़ा बैठाय॥

लखैं सब को वह देखि न पाय। नाम परताप बड़ा मुद दाय॥

बने शिव प्रभु के हित कपि भाय। बिभीषण को गृह परै देखाय।६४०।

 

लखैं बहु तुलसी के बृन्दाय। लिखा गृह राम नाम सुखदाय॥

विभीषण सोये रहै सुख पाय। समय दो पहर क जानो भाय॥

करैं आराम सबै कोइ पाय। निरखि बाहेर तब बैठें आय॥

रूप तब एकै राखैं भाय। कहैं अब कारज सब बनि जाय॥

राम का दास यहाँ कोइ भाय। कीर्तन राम नाम का भाय।६५०।

 

करैं हनुमान हिये हर्षाय। सुनत ही जागि बिभीषण आय। ।

धाय कर चरनन में गिरि जाँय। उठावैं पवन तनय सुखदाय।

लगावैं उर में अति हर्षाय। हाल सब बिधिवत देंय बताय।

बिभीषण सुनैं शान्त चित भाय। बिभीषण पता देंय बतलाय॥

पहुँचि तब माता के ढिग जाँय। अशोक के बृक्ष पैं बैठि के भांय।६६०।

 

लखैं माता को मन हर्षाय। देंय मुँदरी तब वहाँ गिराय॥

ढनगि के माता के ढिग जाय। देखि कै सुन्दर मुँदरी माय॥

उठावैं दहिने कर सुखदाय। मुद्रीका दस माशे की भाय॥

सोवरण अति उत्तम सुखदाय। जड़ाता में अमोल नग भाय॥

नगै में झाँकी सुघर सुहाय। बनी सिय राम की झाँकी भाय।६७०।

 

देखतै बनै कौन कहि पाय। निरखि के कहैं कौन लैं आय॥

रची माया से ऐसि न जाय। मनै मन कहैं जानकी माय॥

प्राण पति की यह मुँदरी आय। कहैं मुँदरी से श्री सिय माय॥

कहौ मुँदरी तुम कहाँ से आय। कौन लै आयो देव बताय॥

होय परतीति हिया हर्षाय। कहैं मुँदरी सुनि लीजै माय।६८०।

 

शम्भु मोहिं इच्छा ते प्रगटाय। लियो गिरिजा शिव ते मुददाय॥

पूजती रहीं प्रेम ते माय। ब्याह के समय राम हर्षाय।

प्रथम गिरिजा पूज्यौ सुखदाय। दीन हमको श्री गिरिजा माय॥

राम के दहिने कर पहिराय। छगुनियाँ की शोभा अधिकाय॥

देखि सब सुर मुनि मन हर्षाय। फेरि गणपति को पूज्यौ माय।६९०।

 

दीन गणपति मणिमाल पिन्हाय। राम के गले कि छजि अधिकाय॥

देव मुनि कहि न सकैं कोइ भाय। आपने पूज्यौ गिरिजा माय॥

दीन चूड़ामणि शीश सुहाय। बनी झाँकी शिव उमा कि माय।

शीश पर धारयौ मन हर्षाय। फेरि गणपति को पूज्यौ माय॥

गजानन दीन्ह्यो माल पिन्हाय। शुकुल रंग गजमुक्ता सुखदाय।७००।

 

चमक अति गले माझ लहराय। ब्याह करि चले अवध रघुराय॥

बिष्णु धनुबान दीन सुखदाय। दीन बिधि कुण्डल मुकुट लगाय॥

इन्द्र दियो चंवर छत्र पंखाय। लक्ष्मी ब्रह्मणी दियो आय॥

घेंघरा सारी चोली माय। इन्द्राणी दियो सिंहासन लाय॥

आपके बैठन हित सुखदाय। दीप मणि दियो शेष हर्षाय।७१०।

 

भवन परकाश हेतु सुखदाय। दियो बेड़ा श्री शंकर आय॥

सोबरण के नग जड़े स्वहाय। करन चारों भाइन सुखदाय॥

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