॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
न मारै उसे धर्म युद्धाय। मारिहैं लखन तोहिं अब भाय।४२३०।
काल तेरे शिर पर मड़राय। सुनै घननाद बचन यह भाय॥
क्रोध तन में अति जावै आय। धनुष औ बान डारि महि धाय॥
कहै आओ देखैं बल भाय। पकरि के फेकौं ऊपर जाय॥
प्राण लौटत में तन से जाँय। मारिहौं या बिधि ते तोहिं भाय॥
रहे जो धर्म शास्त्र बतलाय। पहुँचि सन्मुख कर करन भिराय।४२४०।
करै अति ज़ोर न चलै उपाय। घसोटा जाम्वन्त दैं भाय॥
गिरावैं पट महि ऊपर आय। होय मुर्च्छा कछु होश न भाय॥
बालुका मुख में कछु भरि जाय। भालु कपि होश में आवैं भाय॥
लखैं यह कीन युद्ध बृद्धाय। उठै तो फेरि लड़ै यह धाय॥
बिकल करिहै छल बल ते भाय। अभी मुर्च्छा में पड़ा देखाय।४२५०।
पीटि लीजै खुब आह बुताय। शक्ति श्री लखन के मारेसि धाय॥
वही यह दुष्ट पड़ा महि भाय। लेव सब मिलि बदला वह भाय॥
दाह सब के तन की बुझि जाय। कहैं तब जाम्वन्त सब भाय॥
शान्त ह्वै सुनो बचन दुख जाय। मरै नहिं हम तुम से यह भाय॥
लखन के हाथन मरिहै आय। नहीं कछु होश इसे है भाय।४२६०।
मारना अनुचित हमैं बुझाय। सोवते बालक का मुख भाय॥
चूमिये का जानै को आय। सूर का धर्म नहीं यह आय॥
मूड़ सोवत में काटै जाय। करै विश्वास घात जो भाय॥
मिलै फल देर न लागै आय। जौन जस करै तैस फल पाय॥
मानिये सब यह मम बचनाय। इसे हम लंक को देंय पठाय।४२७०।
होश जब ह्वै है तब फिरि आय। लड़य्यौ फिरि जा के मन जस आय॥
अभी तो पड़ा होश नहिं भाय। सुमिरि सिय राम नाम बृद्धाय॥
दहिन पग पकड़ैं झुकि कै भाय। घुमावैं सात बार तेहि भाय॥
फेंकि दें लंक द्वार पर जाय। लगै ठोकर फाटक गिरि जाय॥
शब्द पुर भर में जावै छाय। चेत कछु देर में होवै आय।४२८०।
लखै लंका कोहि बिधि हम आय। उठै निज भवन में पहुँचै जाय॥
यज्ञ की सब समान भरवाय। जाय देबी मठ के समुहाय॥
निशाचर चारों तरफ से भाय। खड़े होवैं कर लै शस्त्राय॥
करै तब हवन धूम से भाय। शब्द स्वाहा का परै सुनाय॥
धुवाँ असमान में छायो जाय। उठैं लपटैं सुगन्ध की भाय।४२९०।
महक बहु दरि तलक बहि जाय। बिभीषण कहैं प्रभू सुखदाय॥
यज्ञ घननाद करत लंकाय। पूर जो होवै मरै न भाय॥
मातु काली को बर हो जाय। करो जलदी अब प्रभू उपाय॥
यज्ञ विध्वंश होय दुख जाय। कहैं प्रभु पवन तनय सुखदाय॥
जाव कछु वीर संग लै धाय। यज्ञ विध्वंश करावो जाय।४३००।
कार्य्य यह होय विलम्ब न लाय। चलैं चरनन धरि शिर मरुताय॥
संग नल नील सुभट मरुताय। अंगदौ गव गवाक्ष संग जाय॥
चलैं सुग्रीव दधिबल धाय। मयन्दौ जाम्वन्त संग जाय॥
पहुंचि श्री लंक पुरी हर्षाय। सरोवर एक बना तहँ भाय॥
भरा निर्मल जल मीन देखाय। राक्षस चहुँ दिशि घेरे भाय।४३१०।
खड़े हैं अस्त्र लिहे दुखदाय। हवन का कुण्ड बड़ा गहिराय॥
सामने मंदिर के हैं भाय। टाल तन्दुल यव तिलन क भाय॥
धूप जयफर औ लौंग मिलाय। शुद्ध मल्यागिरि गूगुर भाय॥
नारियल और कपूर मिलाय। सुगन्धैं कई भाँति की भाय॥
सबै मेवा ता में ढिलवाय। सोवरन कलशन घी भरवाय।४३२०।
धरायो शोभा कही न जाय। पताका बन्दन लागे भाय॥
जारी........