॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
साँच हम तुमसे कहैं सुनाय। बिना कोइ कारन कारज भाय॥
होत नहिं वेद शास्त्र कहैं गाय। ऋच्छ कपि मरैं न एकौ भाय॥
लौटि सब अवध मेरे संग जाँय। वंश तव जो संग लड़िहै आय॥
छोड़ि तनु बिष्णु पुरी को जाय। सुनै हरि के अमृत बचनाय।४१४०।
लड़ै तब भालु कपिन ते धाय। दोउ कर कसिकै देय घुमाय॥
गिरैं बहु तर ऊपर महि आय। क्रोध तन में प्रभु के तब आय॥
चलावैं बाण शीश कटि जाय। गिरै शिर महि में मानो भाय॥
धमाका उठै तोप सम आय। हंसै शिर कहै राम सुखदाय॥
सिंहासन नभ ते आवत धाय। फेरि हरि मारैं शर एक भाय।४१५०।
दहिन भुज कटि कै महि गिरि जाय। तीसरे बाण से बाम भुजाय॥
काटि हरि देवैं धरणि गिराय। बाण चौथा हरि देंय चलाय॥
नाभि से धड़ कटि महि गिरि जाय। बाण पंचवां प्रभु मारैं भाय॥
गिरैं पग जुदे जुदे दोउ भाय। उसी क्षण दिब्य रूप ते भाय॥
बैठि जावै बिमान हर्षाय। कहै पारषदन से सुनिये भाय।४१६०।
राम ढिग चलौ यान लै धाय। चलैं पारषद प्रभु ढिग जाँय॥
धरैं उतरै तहँ पर हर्षाय। करै पैकरमा पाँचौ धाय॥
गिरै चरनन में हिय हर्षाय। उठाय के हरि उर लेंय लगाय॥
न जानैं भालु कपी लखनाय। बैठि के सिंहासन में भाय॥
करै फिरि राम नाम धुनि गाय। उड़ैं पारषद जाँय लै धाय।४१७०।
देव मुनि जै जै करैं सुनाय। फूल बरसावैं नभ ते भाय॥
दुन्दभी बाजा अपन बजाय। सिंहासन श्री बैकुण्ठ में जाय॥
धरैं पारषद हिय हर्षाय। उतरि फिर रमा बिष्णु ढिग जाय॥
परै चरनन में अति सुख पाय। मातु पितु कर शिर देंय फिराय॥
कहैं बैठो आसन पर जाय। संग ही देंय तुम्हैं दरजाय।४१८०।
आय बड़ भ्रात तुम्हारो जाय। रही अब द्वापर की श्रापाय॥
प्रभू किरपा वह भी मिटि जाय। सुनै यह बैन चलै हर्षाय॥
जाय सिंहासन बैठै जाय। दशानन सुनै हिये हर्षाय॥
बुलावै मेघनाद पुत्राय। कहै लघु भ्रात कुम्भकर्णाय॥
मारि हरि दीन सुनो सुखदाय। जाव अब लड़ौ समर में धाय।४१९०।
देखावो छल बल सब को जाय। चलै संग सेना लै बहु धाय॥
पहुँचि फिरि समर भूमि में जाय। लखन लखि कहैं प्रभु सुखदाय॥
आयगो मेघनाद योधाय। कृपा से आप कि मारौं जाय॥
बचै नहि अबकी कहूँ लुकाय। राम हसि कहैं लखन सुखदाय॥
मारिहौ अब नहिं बचि कै जाय। लखन प्रभु चरनन परि उठि धाय।४२००।
चलैं लै कटक भालु कपि भाय। जाँय सन्मुख में होय लड़ाय॥
सरासर बाण चलैं दुखदाय। राक्षस बाण सिखे बहु भाय॥
चलावैं खूब ज़ोर करि धाय। राक्षस मारैं बहु लखनाय॥
लखै घननाद क्रोध तन छाय। मारि बाणन ते कपि ऋच्छाय॥
देय महि ऊपर तहाँ गिराय। नील नल अंगद द्विविदौ भाय।४२१०।
गिरैं दधिबल मयन्द मुर्च्छाय। गिरैं सुग्रीव गवाक्षौ भाय॥
गिरैं गव और बिभीषण राय। होश कछु पवन तनय को भाय॥
कटक सब तितिर बितिर ह्वै जाय। चलै तब जाम्वन्त समुहाय॥
कहै अब मोर तोर युद्धाय। कहै घननाद जानि बृद्धाय॥
छोड़ि हम दीन न मारेन भाय। कहै तब जाम्वन्त रिसिआय।४२२०।
कीन तुइ कौन बीरता आय। भालु कपि बिना अस्त्र के आय॥
शस्त्र से मारे कौन बड़ाय। बहादुरी तब जानित हम भाय॥
लड़त तुइ बिना अस्त्र के आय। अस्त्र जा के कर होवै भाय॥
लड़ै वह उससे समता आय। अस्त्र गिरि परै टूटि जो जाय॥
जारी........