॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
क्रोध ऊपर से करौ बनाय। बिष्णु हर को निशि बासर ध्याय।४०४०।
रहै हैं एकतार मन लाय। एकता ऐसी कहा न जाय॥
शेष नारद नहिं सकैं बताय। जगत हित खेल होत यह भाय॥
तरैं नर नारी कीरति गाय। आप हम में हम आप में भाय॥
आप ही आप करत खेलवाय। आप ही खेलैं बहु बनि भाय॥
आप ही आप रहै बतलाय। एक ही हरि दूसर को भाय।४०५०।
जानते सब हौ रहै बकाय। कहैं तब कुम्भकर्ण हर्षाय॥
होय अब पकड़ एक फिरि भाय। भिरैं दोउ बीर परस्पर आय॥
लड़ैं कछु देर गिरैं नहिं भाय। पकड़ि हनुमान को उर में लाय॥
छोड़ि कर गिरै उतानै भाय। प्रेम आवेश मिटै जब भाय॥
खड़ा होवै तब हिय हर्षाय। कहैं तब लछिमन हाँक सुनाय।४०६०।
संभरु रे दुष्ट काल गो आय। चलावैं बाण मंत्र पढ़ि भाय॥
एक ते शत सहस्त्र ह्वै जाँय। बेधि सब तन में जावैं धाय॥
रुधिर से तर शरीर ह्वै जाय। कहै तब कुम्भकर्ण हर्षाय॥
मरौं नहिं आपके मारे भाय। आप हौ धरणी धर अंशाय॥
लड़न का हाल न जानौ भाय। जाय अब धरणी थाम्हौ जाय।४०७०।
नाम धुनि रूप में चित्त लगाय। राम की सेवा के बल भाय॥
बाण कछु मम तन मारय्यौ आय।नींद अरु नारि क त्यागेव भाय॥
किहेव चौदह बर्षै सेवकाय। भेष तापस का लिहेव बनाय॥
वीर्य्य रक्षा खूब कीन्हेव भाय। इसी से मारय्यौ शर तन भाय॥
नहीं तो नेक न लागत आय। हमारौ अंग वज्र सम भाय।४०८०।
बाण तौ बेधि सकैं नहिं आय। बेधिहैं हरि निज बाणन भाय॥
देखिहौ आप सत्य हम गाय। करौ जो आप कि चलै उपाय॥
प्रभु के सन्मुख अब हम जाँय। लखन हंसि कहैं कुम्भकर्णाय॥
धन्य तव मातु पिता जन्माय। मारि सब तन हम बेधेन भाय॥
तुम्हैं कछु दुख न परत बुझाय। शूर रणधीर बड़े तुम भाय।४०९०।
दीन बिधि ने तुम को बर आय। बर्ष में दुइ दिन जागौ भाय॥
दिवस निशि सोवौ पग फैलाय। अगर कहुँ दुइ दिन सोवतेउ भाय॥
और सब निशि दिन जागतेव आय। पेट भर भोजन मिलत न भाय॥
कहाँ तक रावण करत उपाय। दीन मति बिधि ने तब उलटाय॥
शारदा जिह्वा पर बैठाय। लखन के सुनि सब बैन बड़ाय।४१००।
चलै श्री राम ब्रह्म ढिग धाय। लखैं रघुनाथ उठैं हर्षाय॥
चढ़ावैं धनुष बान कर लाय। पहुँचि सन्मुख चरनन गिरि जाय॥
चलैं दोउ दृगन ते आँसू आय। फेरि कर शिर पर दें सुखदाय॥
खड़ा होवै कर जोरि के भाय। कहै प्रभु धन्य दीन सुखदाय॥
देत अधमन के पाप नशाय। भक्त वत्सल हरि आप कहाय।४११०।
हेतु मेरे जग प्रगटयौ आय। उबारयौ सतयुग में प्रभु जाय॥
समय अब फेरि रह्यौ नगचाय। कृपा निधि द्वापर में दोउ भाय॥
जाँय हम ख्याल न दिहेव भुलाय। भेजिये जलदी अब सुखदाय॥
सामने खड़ा हूँ शिर निहुराय। लड़ौं मैं कासे हे सुखदाय॥
देव सब ऋच्छ कपी बनि आय। आप का नाम सुमिरि सुखदाय।४१२०।
धरैं बहु रूप कौन कहि पाय। रूप दूसर धरि देखन आय॥
रहै सब आसमान में छाय। सिंहासन हमै परत देखलाय॥
बहुत हैं कौन उन्हैं गिनि पाय। आप मालिक सब के सुखदाय॥
देर अब करौ न देव पठाय। कहैं प्रभु कुम्भकर्ण वीराय॥
क्रोध करि युद्ध करौ कछु धाय। भालू बानरन को मारौ जाय।४१३०।
क्रोध तब हमरे तन में आय। नहीं तो मारैं हम किमि धाय॥
जारी........