॥ अथ धनुष भङ्ग वर्णन ॥
कह्यौ श्री विश्वामित्र सुनाय। उठौ श्री राम भक्त सुखदाय॥
धनुष को खण्डन कीजै जाय। जनक परिताप मिटै सुख पाय॥
खड़े भे सहजै श्री रघुराय। निरखि अभिमानिन दुख अति पाय॥
गये वे सकुचि बोलि नहिं जाय। लीन मुख नीचै को लटकाय।
चले गुरु चरनन शीश नवाय। सिंह जैसे गज ऊपर जाय।१०।
लखन ने लख्यौ राम को भाय। जानि गे धनु तोरैं सुखदाय॥
दाबि दहिने पग धरनि को धाय। आवरण जौन लखत सब भाय॥
कह्यौ पृथ्वी देबी मुद दाय। कृपा करि संभरि के बैठौ माय।
कमठ श्री शेष दिग्गजौ भाय। सुनौ दिगपाल बराहौ भाय॥
साधिये सब जन चित्त लगाय। सहायक पृथ्वी जी के भाय।२०।
देव मुनि सब से कहौं सुनाय। चित्त हरि चरनन लेव लगाय॥
नहीं तो बड़ा गज़ब ह्वै जाय। मही आवरण उलटि जो जाय॥
लखन यह सब को बिनय सुनाय। खड़े भे प्रभु चरनन उर लाय॥
नगर नर नारी बिनवैं भाय। इष्ट अपने अपने सुखदाय॥
सुनयना जनक सिया मुद दाय। मनै शिव गणपति गिरिजै ध्याय।३०।
राम जब पहुँचे धनु ढिग जाय। दृष्टि एक सिया पै कीन्हों भाय॥
बिकलता प्रेम की ऐसी आय। मिलैं कब प्राणनाथ सुखदाय॥
राम ने धनु दहिनायो धाय। सूर्य्य भे पीठी पर मुददाय॥
दिवस था पांच घरी तब भाय। खड़े भे पूरब मुख सुखदाय॥
ताकि के राँ बीज को भाय। खींचि दृष्टी से उर पधराय।४०।
नाम आपै का जौन कहाय। प्रलय पालन उत्पति सुखदाय।
शम्भु ने भरयौ बीज यह भाय। सकै को तोरि बिना रघुराय॥
धनुष को जौन उठायो जाय। गँवायो आधी ताक़त भाय॥
उसी से अधिक अधिक गरुवाय। कीन हर लीला हरि हित भाय॥
श्री गुरु द्विजन को शीश नवाय। लियो मन ही मन कोशल राय।५०।
उठायो धनुष दीन सुखदाय। आप ही आप चाप चढ़ि जाय॥
पकरि कै दोउ गोसन को भाय। चह्यौ एकै में देंय भिड़ाय॥
टूटि दो खण्ड भये तब भाय। गयो सब लोकन शब्द सुनाय॥
डिगी सुर मुनिन समाधी भाय। कहैं का भयो जानि नहि जाय॥
कमठ औ शेष गये घबड़ाय। गये दिग्पालन होश उड़ाय।६०।
दिग्गजौ बाराहौ अकुलाय। गिरे कछु होश रह्यौ नहि भाय॥
संभारयौ पृथ्वी देवी भाय। सुमिरि उर राम नाम सुखदाय॥
आवरण बच्यो न उलट्यो भाय। नाम परताप बड़ा मुददाय॥
लखन श्री राम चरण उर लाय। खड़े थे महि दाबे सुखदाय॥
जनकपुर व्यापेव कछु नहि भाय। भक्त की सदा सुनत हरि आय।७०।
धनुष में चाप रही जो भाय। हरे मखमल की अति सुखदाय॥
टूटि कै आधी धनु संग भाय। गई श्री इन्द्रपुरी हर्षाय॥
करैं पूजन सुर पति नित भाय। प्रेम तन मन करि हिय हर्षाय॥
दूसरा खण्ड मही धंसि जाय। एक योजन पर ठहरयो भाय॥
पूजतीं पृथ्वी जी नित आय। जानते सुर मुनि सब हैं भाय।८०।
होत अवतार जबै जब भाय। काम तब वही धनुष दे आय॥
शम्भु तब वही भूमि पर जाय। जहाँ कछु चिन्ह जगत हित भाय॥
परत झाँवा सा है दिखलाय। दरश करते तँह पर सब जाय॥
करैं सुर मुनि नित फेरी जाय। भूमिका है पुनीत अति भाय॥
खड़े हों शिव हरि सुमिरि के भाय। करैं आकर्षण धनु चित लाय।९०।
खण्ड दोउ पहुँचैं आपै आय। चमकते वैसे जैस रहाय॥
पढ़ै हर राम मन्त्र हर्षाय। जुरैं दोउ खण्ड आप ही जाय।
जारी........