॥ अथ फुलवारी भ्रमण वर्णन॥
जारी........
भाव माता को उर में लाय। चलौ अब श्री गुरु के ढिग भाय॥
देर करने का समय न आय। पहुँचिगे गुरु ढिग दोनो भाय॥
दीन दोउ दोना मन हर्षाय। करन पूजा लागे मुनि राय।२९०।
बैठि दोनो भाई सुख पाय। गये सब माली अति सुख पाय॥
काम अपने अपने पर आय। होश में सीता सब सखि आय॥
उठीं फिर मन्दिर पहुँचीं जाय। कियो पूजन फिरि वैसै भाय॥
जैस पहले हम दीन बताय। भईं परसन्न बहुत ही माय॥
प्रेम की रीति कही नहि जाय। प्रगट फिरि मूर्ति ते ह्वै के माय।३००।
लीन तब सीतै उर में लाय। कह्यौ मिलिहैं तुम को रघुराय॥
जिन्हैं तुम बाग में देखा जाय। सखी एक तुम्हैं गई लै धाय॥
सबी सखि पीछे पहुँचीं जाय। देखि सब सुधि बुधि गई हेराय॥
वही पति तुमको मिलिहैं आय। धनुष को तोड़ैं छिन में भाय॥
रहै यश जग में उनको छाय। डारिहौ उर जय माला आय।३१०।
ब्याह तब उन संग ह्वै है जाय। करावैं बिधि तँह ब्याह को आय॥
पढ़ैंगे वेद मधुर स्वर गाय। प्रथम हो हमरी पूजन आय॥
फेरि गणपति की हो सुखदाय। चढ़ाओ चन्दन अक्षत लाय॥
फूल शिर माल गले सुखदाय। दान तँह बहु प्रकार करवाय॥
नृपति रानी पग पूजैं आय। परैं भाँवरि तब मन हर्षाय।३२०।
बरैं संग तीनौ बहिनी आय। भरत औ लखन शत्रुहन भाय॥
बिदा ह्वै अवधपुरी में जाय। करौ आठौं आनन्द अघाय॥
पुत्र तुमरे दो होवैं आय। नाम लव कुश उनको कहवाय॥
बड़े हों शूर बीर सुखदाय। देंय सब प्रजा क दुःख नशाय॥
जगत बिजयी होवैं दोऊ भाय। कह्यौ यह गिरिजा बचन सुनाय।३३०।
भईं मन मगन न प्रेम समाय। सिया को उमा माल पहिराय॥
गले का अपने दीन्हों भाय। भईं परवेश मूर्ति में माय॥
गईं सिय बाहेर तब फिरि आय। कह्यौ सब सखिन से चलिये धाय॥
भई कछु देर मातु रिसिआय। गईं सब संग सखी सुखदाय॥
भवन में पहुँचि गईं हर्षाय। जाय माता ढिग बैठीं जाय।३४०।
सुनयना देखि के अति सुख पाय। खुशी हौ आज बहुत मुददाय॥
कह्यौ गिरिजा दियो दर्शन माय। भेद कछु सकैं नहीं बतलाय॥
मातु के सन्मुख कहत लजाय। बढ़ा परवाह प्रेम का भाय॥
राम छबि सन्मुख परत देखाय। शक्ती औ शक्ति मान कहाय॥
करी यह लीला जग हित आय। जौन हम लीला तुम्हैं सुनाय।३५०।
भई सब पाँच घरी में भाय। कहैं पद कृष्णदास यह गाय॥
पढ़ै या सुनै प्रेम बढ़ि जाय।३५३।