॥ इति शुभम॥
४६९॥ पलटू साहब के पद॥
दोहा:-
पलटू उधर को पलटिगे उधर इधर भा एक।
सतगुरु से सुमिरन सिखै फरक परै नहिं नेक।१।
चौपाई:-
फरक परे नहिं नेक शब्द पै सूरति दीन्हे।१।
ध्यान धुनी परकास दसा लै रूप को चीन्हे।२।
सुर मुनि आशिष देंय भये निज कुल परवीने।३।
पलटू कह तन त्यागि अचलपुर बासा लीन्हे।४।
दोहा:-
आपै आपको जानते आपै का सब खेल।
पलटू सतगुरु के बिना ब्रह्म से होय न मेल।१।
चौपाई:-
ब्रह्म से होय न मेल कथैं संतन की बानी।
लोग कहैं है सिद्ध राह निज पुर की जानी।२।
जग में खातिर होत अंत में हो हैरानी।
पलटू सतगुरु शरनि बिना अंधे अज्ञानी।३।
चौपाई:-
जीवन मुक्त जियति सब जाना। तब हो भक्त रूप भगवाना॥
सतगुरु का प्रथमै करि ध्याना। तब घट भीतर घुस के छाना॥
जो कोइ भजन कि बिधि को जाना।
वा से यह सब बात बताना॥
शुद्ध धान्य है भजन खजाना। पलटू कह साधक हो दाना।४।
पद:-
सतगुरु करो मारग मिलै बनि दीन सच्चे दास हो।
दो बजे निशि में उठो साधन में बारह मास हो।
सिद्धांत सब सुना का पड़ी तब दुख भव का नास हो।
अनहद सुनो अमृत पियो हानि नाम लै परकास हो।
नागिनि जगै चक्कर चले कमलन क उलटि विकास हो।५।
सुर मुनि मिलैं उर में लगा बोले भजन में पास हो।
खट रूप का तस रीफ लाना सामने में खास हो।
अंधे कहै तन त्यागि लो निज वतन में वास हो।८।