॥ माटी खान लीला ॥
॥ माटी खान लीला ॥
जारी........
दोहा:-
शयन भवन में राधिका, पहुँचीं जैसे जाय।
मुरली धर परगट भये, तुरत वहाँ पर आय।१४५।
चौपाई:-
महा प्रकाश कीन यदुराई। राधे के नैन गये चौंधाई।
पलँगा पर बैठी तहँ प्यारी। जिमि मन्दिर में मूर्ति पधारी॥
मोहन दीन मोहनी डारी। खुल्यो न मुख को करै गोहारी।
दुलरी छोरि लीन बनवारी। फेरि पलँग पर दीन लेटारी॥
मखमल की तकिया के भीतर। दुलरी धरि दीन्हेव मुरलीधर।
सिरहाने फिर दीन लगाई। चादर तन पर दियो ओढ़ाई॥
अन्तरध्यान भये गिरधारी।आये अपने भवन मंझारी।
माता ते बोले मुसक्याई। मो को भूँख लगी है माई॥
मातु कह्यो दुहि लावो गैया। तब पावो फिर कुँवर कन्हैया।
चले गऊ दोहन दोउ भाई। हलधर से हरि दीन बताई।१५०।
तब बलराम कह्यो मुसक्याई। पूरी भई कसम अब भाई॥
गौवैं दुहि फिर भवन में आये। भोजन कीन परम सुख पाये॥
शयन कीन संघ दोनों भाई। उठे प्रभात तुरत सुखदाई।
यमुना गये नहाने धाई। जहँ बिश्राम घाट है भाई॥
राधे संघ सखी बहु आईं। शिर पर कलश कमर कर लाईं।
दोनों भाई करि अस्नाना। अपने गृह को कीन पयाना॥
कलशा धरि सब सखी नहावैं। यमुना जी में खेल मचावैं।
छिपि छिपैया करतीं सारी। एक ते एक बड़ी सुकुमारी॥
करिकै खेल आय फिर तट पर। पहिरयो बसन दूसरे तन पर।
सखी बिशेषा दृष्टि उठाई। राधे तन ताकेव तहँ भाई।१५५।
गले में दुलरी नहीं दिखानी। राधे सन बोलीं मृदु बानी॥
हे मम प्रिया किहेव का दुलरी। छोरि के धरेव कि टूटि केबखरी॥
राधे गले पै हाथ चलायो। दुलरी नहीं शोक तन छायो।
गीले बसन सखिन पहिरायो। यमुना जी में खोज करायो॥
ढूँढ़ैं राधे संग सब सखियाँ। पगन से नीचे करिकै आँखियाँ।
निर्मल बारि में सबै देखाई। कौड़ी पड़ी होय चमकाई॥
दुलरी को कहुँ पता न लागै। संग कि सखी दुःख में पागै।
राधे संग निकसि सब आवैं। बदलैं बसन सबैं मुरझावैं॥
बसन धोय कलशा भरि लेवैं। राधे संग भवन चलि देवैं।
आय भवन राधे जब जावैं। सब सखियन मिलि हाल सुनावैं।१६०।
राधे मातु सुनैं दुख पावैं। सुता को चट पट गले लगावैं।
राधे को लै गोद में माई। समुझावन लागीं हर्षाई।१६१।
दुलरी दूसर देऊँ गढ़ाई। आजै स्वर्ण कार बुलवाई।
कौन कमी तेरे गृह माहीं। जासे सोच करत मन माही।१६२।
राधे कहैं सुनो मम माई। वैसी दुलरी कौन बनाई।
वह दुलरी जो देव मँगाई। तब मम प्राण रहें सुनु माई।१६३।
दुलरी का मैं हाल बतावों। कहाँ से आई को लै आओ।
दोहा:-
ब्रह्माणी गिरिजा रमा, दीन्हेउ दुलरी मात।
फूटै टूटै नहिं कबहुँ, सांची मानौ बात॥
चौपाई:-
ना वह मैली होवै माई। रहे एक रस चमक सदाई।
माता कहैं सुता सुनि लीजै। धरयो छोरि होई गुनि लीजै।१६५।
काल्हि शाम तक मैं लखि पाई। दुलरी गले पड़ी सुखदाई।
की पलँगा के खाले गिरिगै। की यमुना की बाट में गिरिगै।१६६।
टूटि न सकै फूटि नहि सोई। ग्रन्थि ढीलि ते छूटि गै होई।
दोहा:-
मूसा कहीं उठाय कै की धरि दीन्हेउ जाय।
घबराओ तुम मति सुता, भवन लेंव ढुँढ़वाय॥
राधे की माता कह्यो, सब सखियन समुझाय।
जारी........