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॥ माटी खान लीला ॥

     जारी........

जाओ निज निज गृह सबै, पाक बनाओ जाय।१६८।

 

चौपाई:-

गईं सखी अपने अपने गृह। तब राधे ढुँढ़वायो निज गृह।

मिली न दुलरी दुख भो भारी। नैनन ते आँसू अति जारी॥

माता कहैं लली मम प्यारी। तव दुख से मो को दुख भारी।

दुलरी के कारन सुकुमारी। तब तन पीलो भयो दुलारी।१७०।

छोड़ि दे चिन्ता सुनु मम बानी। नाही तो होई बड़ि हानी।

तव सुख से मोको सुख मानो। तव दुख से मोको दुख मानो॥

राधे कहैं सुनो मम माई। दुलरी बिना दुःख नहि जाई।

मातु पिता पुर जन समुझावैं। राधे के मन नेक न आवैं।१७२।

तीनि दिवस या बिधि ह्वै गयऊ। राधे जल भोजन नहि लयऊ।

यशुमति सुन्यो शोक उर आवा। द्वारे पर से हरि हि बोलावा।१७३।

गोदी में बैठारि के श्यामहिं। पूछैं गृह के तजि सब कामहि।

कहौ लाल दुलरी तुम लायो। हमरे आगे सौगंध खायो।१७४।

 

सोरठा:-

गृह में थे बलराम, जब तुम हमरी शपथ की।

सुनिये प्यारे श्याम, दुलरी तुम है जपत की।१७५।

 

चौपाई:-

चोरी करना ठीक न भैय्या। दीजै दुलरी कुँवर कन्हैया।

हम को चुपके देव गहाई। हम देवैं वहँ पर पहुँचाई॥

मातु पिता राधे हरखावैं। बृज के लोग जानि नहि पावैं।

कहैं श्याम मृदु बचन बनाई। दुलरी हम लाये नहिं माई॥

दुलरी अबला गले में लावैं। ब्याह न भयो जिसे पहिरावैं।

आपै चोर हमें बतलावो। तौ बहु ओरहन झूठे पावो॥

सुत पितु माता का होवै काना। अपने मुख वै कहैं न काना।

दुलरी एक गढ़ाय के माई। दै आओ राधे गृह जाई॥

तुम्हरे गृह में सब कछु माई। नाम तुम्हारो वृज में छाई।

कसम तुम्हारी जो मैं खाई। राधे को डेरवायन माई।१८०।

 

शायद मुरली फेरि चोरावैं। उनके संग सखी बहु आवैं।

राधे जो डरि जावैं माई। तौ कोइ सखी न सकै चोराई॥

चंचलता हम में कछु माई। दूध दही माखन लै खाई।

सब भीतर से हमको चाहैं। या से उनके बचन निबाहैं॥

निज स्वभाव जा को जो होई। ताको मेटि सकै नहि कोई।

सांची सब हम दीन बताई। भावै मनहिं करो सो माई।१८३।

सुनि के बचन श्याम के माता। बोलि न सकीं नेकहू बाता।

 

दोहा:-

मातु कि गोद से उठे हरि, द्वारे पहुँचे जाय।

राधे के गृह को चले, पहुँचि गये हर्षाय।१८४।

 

चौपाई:-

राधे कि मातु लख्यो बनवारी। धाय उठाय गोद बैठारी॥

कहैं कृष्ण सुनिये प्रिय माई। बड़ी उदासी गृह में छाई।१८५।

हमरे करने लायक होवै। सो हम करैं देर नहिं होवै।

कहैं राधिका जी की माई। दुलरी प्रिया कि बही कन्हाई॥

तीनि दिवस ते जल औ भोजन। त्यागि दीन ब्याकुल है तन मन॥

या से हमको दुख नन्द लाला। दीन बताय सत्य अहवाला।१८७।

 

दोहा:-

कहैं श्याम सब सखिन को लीजै मातु बोलाय।

सब के सन्मुख स्वप्न मैं तुम से देउँ बताय॥

 

चौपाई:-

सत्य स्वप्न जो होवै माता। तौ फिर तुम मान्यौ मम बाता।

माता धावन दीन पठाई। सब सखियन को लीन बोलाई॥

 

दोहा:-

भीर भई वृषभान के, गृह द्वारे तक जान।

तब राधे की मातु से, कह्यो कृष्ण भगवान॥

 

चौपाई:- देख्यौं स्वप्न राति में माई। एक नारि मम सन्मुख आई॥

जारी........