॥ विनती ॥
बिसरायो न सतगुरु हमारि सुधिया।
काम क्रोध मद लोभ मोह मन शांत करौ टूटै टटिया।
द्वैत छुटावो कपट मिटावो ठीक होय चित की बृतिया।
सूरति शब्द में लागि रहै हरि दर्शन होवैं दिन रतिया।४।
जोति प्रकाश दशा लय पावों निर्गुन निराधार गतिया।
मुक्ति भक्ति मैं जियतै पावौं आवन छूटि जाय हटिया।
बिन सतगुरु के पार होय को हरि माया संग में खटिया।
राम सहाय की अर्ज यही तब चरन कमल रहे मन सटिया।८।