९१२ ॥ श्री दाता दीन जी ॥
पद:-
मन तुम कहा हमारा मानो।
ठगन कि संगति छोड़ि देव अब बांधो मर्द को बानो।
सतगुरु करि हम राम मन्त्र ले संघ मिलि ताना तानो।
नाम कि धुनी खुलै सुख होवै पहुँचि जाव फिर ध्यानो।
देखो लीला बरणि सको क्या अनहद सुनो वागानो।५।
सुर मुनि लोक तीर्थ सब घट में नूर अजब चमकानो।
सुधि बुधि रहै न कहौ कौन बिधि जब लय होय समानो।
राम सिया की झाँकी हर दम निरखों प्रेम में सानो।
तीनो गुण के परे भये बिन कैसे होय यह ज्ञानो।
जग से बन्धन टूटै तब यह जब मम बचन को छानो।१०।
अन्त समय हरि पुर को चलिये बैठि के सुभग बिमानो।
दाता दीन कहैं कर जोरे नेक न और बखानो।१२।
।। श्री भक्त भगवन्त चरितामृत सुख विलास सम्पूर्णम ।।
१७-७-५०