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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ॥

अनन्त श्री परमहँस राम मंगल दास जी महाराज 
के 
परम कल्याणकारी 
वचनामृत 
(कर कमलांकित स्लेटों की प्रतिलिपि) 

१. सादे कपड़े पहनो। सच्चाई से रहो। परिवार का पालन करो। किसी से बैर न करो। सबके सुख दुख में शामिल रहो। बेईमान का अन्न न खाओ, इसका असर २१ दिन रहता है, मरने पर नरक या प्रेत होना पड़ता है। तुम तकलीफ सह लो दूसरों को आराम पहुँचाओ। भिखारी दरवाजे पर आवे, उसे १ मुट्ठी भीख दो, खाली न लौट जाय। जब तुम को फुरसत हो तब आधा घन्टा जिस देवी देवता से प्रेम हो, उसका जप करो। किसी की जीविका जाती हो तो झूठ कह दो, वैसे झूठ न बोलो। सब कुछ प्राप्त हो जाय। बेखता बेकसूर कोई गाली दे तुम्हे रंज न हो, उसके हाथ जोड़ दो। यह भजन खुलने की कुन्जी हैं। 

२. छोटी छोटी चिड़ियां जो घर में आती हैं उनको यथा शक्ति (जितना सामर्थ्य हो) चावल छितरा दिया करो, और चींटी जहाँ-तहाँ बिल में देखो या मैदान में वहाँ गुड़ आटा मिलाकर बिल के पास रख दिया करो ७ व १० व २१ दिन, तो पाप नास होते हैं। जीवों पर दया करने से भी ऊँची गती होती है - वे वैकुंठ को जाते हैं। यह भजन की साखा है। 

३. भजन मे दीनता, शान्ति की बड़ी जरूरत है। यह दोनों माता हैं - इनकी गोद में रहने से सारा काम बनता है। तब इनका परिवार अपना संगी हो जाता है। क्षमा, श्रद्धा, सन्तोष, धर्म, दया, प्रेम भाव, विश्वास, सत्य, शील यह परिवार इनका है। तब जीव भक्त होकर मुक्त हो जाता है। 

४. अपने भाव से सब देवी, देवता, रिषी-मुनी, सिद्ध-संत कोटिन (करोड़ों) युग के, मिलते हैं। स्वामी जी की जीवनी में भाव ही प्रधान कहा है। 

५. मुसलमानों ने भी भाव पर कहा है: 
हर जगह मौजूद हैं, पर वह नज़र आते नहीं। 
मन के साधन के बिना, उनको कोई पाते नहीं॥