॥ सफाई शाह जी ॥
भाव सबमें मुख्य है, जो भाव की गहि ले लता।
भाव से सुमिरन करै, हरि गोद में नित खेलता॥
भाव से अनहद की धुनि हो, भाव अमृत देवता।
कहता सफाई शाह, मानुस भाव बिन दुख झेलता॥
६. हम हमार नात भाई ठीक रहें बस, उनके (ऐसे भाव वालों के) लिये भगवान नहीं।
७. इष्ट भाव से रीझते (प्रसन्न होते) हैं।
८. जैसा जिसका भाव ठीक होता है उसको वैसा फल होता है। कोई धन, कोई जस, कोई पुत्र, कोई मोक्ष चाहता है। भगवान के पास बहुत घुन-घुना (झुनझुना) है, वही देते हैं। जैसे माता बच्चे को घुन-घुना देती है, वह उसे बजाता है, खेलता है, माता घर का काम करती है। बच्चा मचल जाता है, घुन-घुना फेंक देता है तो माता गोद में लेकर काम करती है। सतोगुणी भोजन, अपनी सच्ची कमाई का अन्न हो, तो मन सतोगुणी हो जाता है। चोर उसे तंग नहीं करते। मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राईवर है। अच्छी जगह ले जाय तो अच्छी गती हो, खराब जगह ले जाय तो खराब गती हो। सारा खेल मन का है।
९. खाली भजन से कुछ न होगा, दो दल हैं: परमार्थ - परस्वार्थ। परमार्थ - भजन करना। परस्वार्थ - सबकी सेवा करना।
१०. जप, पाठ, पूजन, कीर्तन, कथा कहने-सुनने से, सेवा धर्म से, परमार्थ से (तथा) देवगान से पट खुल जाते हैं।
११. पट खुलना (आँखी - कान खुलना):
जब आँखी खुल जाँय तो तमाम (सारे) देवी देवता जो यहाँ घूमते हैं सबको देखने लगो। जब कान खुल जाँय तब रोम रोम से, जर्रा जर्रा से, सब हड्डी से, सब लोकों से नाम (ररंकार) का हाहाकार मच जाता है।
१२. सब देवी देवता भगवान ही बने हैं। दूसरा कोई नहीं है। सब परिवार लड़के लड़की उन्हीं की हैं। (उन्हें) खाने पीने की तकलीफ न हो। तुम तकलीफ सह लो, उनको कष्ट न हो। पट खुल जांय। चिन्ता न करो।
१३. भगवान पर अटल विश्वास करो।
१४. भगवान भरोसे रहो, सब काम धीरे-धीरे ठीक हो जावेगा। सरलता की जरुरत है। छल, अहंकार, वहाँ न पहुँचने देंगे।