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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १० ॥ (विस्तृत)


१४५. जब बाबू महावीर प्रसाद और रामसिंह जी बीमार हुए, तब डा० वैद्य ज्योतिषी जवाब दे दिये। हमारे पास पत्र आया। हम राम सिंह के लिये सर और महावीर प्रसाद के लिये धड़ भगवती को मान दिया, तो रामसिंह ९ वर्ष बाद विदा हुए। महावीर प्रसाद अभी मौजूद हैं। तब भगवती ने कहा, अब शरीर हमारा हो गया। हम तुमको दान, जप पूजन, कीर्तन, पाठ का और पर उपकार भजन बताने का हुकुम देती हैं। जो मन लगाकर करेगा, उसका भगवान भला करेंगे। तब से यही बताते हैं। जिसका भाव गुरू या देवी देवता पर होता है, उसका विश्वास भी अटल होता है, तब कार्य फलीभूत होता है। 

१४६. दोहा:-
जेहि बिरिया जेहि बैसवा, जेहि बिरिया जेहि बैस। 
तुलसी मन धीरज धरो हुइहै ता दिन-तैस॥ 
सियावर रामचन्द्र की जै। 

यही साइत हम जानते हैं और मानते हैं, और नहीं जानते। बेकार है चिन्ता करना, सोच करना, दिमाग खराब करना॥ 

दोहा:-
हुईहै वही जो राम रचि राखा। 
को करि तरक बढ़ावहि साखा॥ 
१४७. बेकार है अपनी अपनी होशियारी छांटना। कोई कहता है यह अर्थ सही है, कोई कहता है यह सही है। जब सही अर्थ जाना जावेगा तो उससे अनर्थ नहीं होगा। वही अर्थ समझो सही है। कटु वचन तो सह पाते नहीं, दूसरों को उपदेश देते हैं। अपनी तारीफ सुनकर मस्त हो जाते हैं। यह द्वैत महाविकराल (बहुत भयानक) है, मति की गती मार देता है। यह पाप का रूप है। सैकड़ों किसम के पाप हैं। लिखने में तकलीफ होती हैं इससे नहीं लिखते। जितनी खोपड़ी हैं, सबके स्वभाव न्यारे-न्यारे हैं। वह पैदायशी हैं, छूटते नहीं हैं जब तन मन से लग जाय प्राणों का लोभ छोड़कर, तब भगवान पलक दरियाई (पलक झपकते ही कृपा करते) हैं, स्वभाव बदल देते हैं। 

१४८. यह शरीर परस्वार्थ (और) परमार्थ के लिये मिला है। न भजन हो तो परोपकार में ही लग जाय। तो चौथे वैकुण्ठ में पँहुच जाय। अपने शरीर से किसी का दिल दुखाना, नीचा दिखाना महापाप है। बड़े भाग्य से नर शरीर मिलता है। इस शरीर के लिए देवता तरसते हैं। यह कर्म भूमि है। यहाँ की अच्छी कमाई से भगवान के धाम में बास होता है। खराब कमाई से नरक में बास होता हैं। 

१४९. भगवान के हजारों नाम हैं। एक में मन लगे तो मुक्ति-भक्ति-ज्ञान सब प्राप्त हो जाय। जिसका जैसा भाव होगा, वैसा फल मिलेगा। 

१५०. भगवान और भगवान के भक्त हर जगह मौजूद हैं। 

१५१. भगवान भाव के भूखे हैं। अपना भाव विश्वास बनाओ। जीव की गती भाव से होती है। 

१५२. जो पुराना संस्कारी है उसे तो भगवान जल्दी मिलते हैं। भोजन सादा सतोगुणी करना चाहिए। रजोगुणी-तमोगुणी भोजन से भजन नहीं हो सकता। तमोगुणी भोजन से क्रोध बढ़ता है। रजोगुणी काम वासना पैदा करता है। यह भोजन नरक को ले जाता है। ईश्वर-प्रेमी साधक इनको त्याग दें तभी पार हो सकता है। 

१५३. भगवान पापी की प्रार्थना सुनते हैं। जब उसमें दीनता आ जाती है, तब भगवान दयालु होकर अपना लेते हैं। 

१५४. प्रभु से कुछ भी मत मांगे। उनके उपकारों को हमेशा याद रक्खे। 

१५५. भोजन पकाते समय मन में अच्छे-बुरे विचारों के परमाणु भोजन में जा मिलते हैं। भोजन बनाते समय रोटी बेलते समय नाम-जप करते रहो तो भोजन सात्विक बनेगा। 

१५६. दान से धन, ध्यान से मन और स्नान से शरीर की शुद्धि होती है। 

१५७. सूर्य नारायण प्रत्यक्ष भगवान हैं। 

१५८. इन चार प्रकार के मदों के कारण जीव भगवान को भूल जाता है। विद्या, जवानी, द्रव्य (धन) और अधिकार। 

१५९. समै (समय) के अनुसार काम करने से देवी-देवता खुश होते हैं। कर्जा लेकर धर्म करना, गया करना, फलीभूत नहीं होता है। गौरांग जी, कृष्ण भगवान, राम जी, नारायण जी, सब देवी देवता प्रेम के भूखे हैं। सवरी के बेर, सुदामा के मकाई चावल, विदुर के केला छिलका, करमा की खिचड़ी, मलूक साहब का चाउर का टुकड़ा, रघुनाथ का सड़ा भात खाया, जो पसू कुत्ता नहीं खाता है। सब लिखा गया है। 

१६०. कर्जा लेकर करने से लिखा नहीं जाता, काट दिया जाता है। भगवान को दिखाऊ काम पसन्द नहीं। (दूसरों की) हंसी को न डरो, भजन न होगा। करम-भरम का नास (भजन में) जुट जाने से होता है। भगवान के नाम में बड़ी शक्ति है। कोई करता नहीं।