॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १३ ॥ (विस्तृत)
१९०. साल में एक दफे किसी पंडित से जन्माँग (कुण्डली) विचार करा ले। जो ग्रह खराब हो, उनका जप दान करा दे। बिना उनका हक दिये, दवा, जप, पाठ पूजन काम नहीं देता। राम जी को शनिश्चर खराब था १४ बरस वनवास दिया। कंद, मूल फल खाते थे। देवता किसी का हक नहीं बन्द करते हैं।
१९१. जिसे सोच्हं, ओंकार, ररंकार, श्रीमन्नारायन, महाविष्णु सबकी प्राप्ती हो जाय, जो हर शै (वस्तु) से रोम रोम से शब्द होता है - वह अशुद्ध शब्द मुँह से नहीं निकाल सकता है। मुसलमानों ने भी लिखाया है।
१९२. जो सतोगुणी हैं उनके लिये सतयुग है, जो रजो गुणी हैं उनके लिये द्वापर, जो तमोगुणी हैं उनके लिये घोर कलियुग है।
१९३. लगभग १८-२० वर्ष पहले की बात है कि रात में श्री नानक देव जी ध्यान में प्रगट भये, वार्तालाप हुई। मैंने पूछा - सभी जीव आवागमन से क्या रहित हो जावेंगे? तो नानक जी ने कहा - नहीं निकल पावेंगे। प्राणान्तकाले (शरीर छूटने के समय) दाहिने हाथ में गंगाजल लेकर तीन बार राम-राम कहकर फूंक मार कर बत्तीसी खोल कर जल मुख में डाल दो तो जीव आवागमन की बीमारी से छुटकारा पा जाय।
१९४. कबीर जी ने कहा है:-
एक घड़ी हरि की तो ५९ घड़ी घर की। कौन करता है? जो चीटी को आटा देते हैं और छोटी-छोटी चिड़ियों को चावल देते हैं, वै वैकुण्ठ जाते हैं। यह भजन की साखा है। परोपकार के समान कोई भजन नहीं है। भजन करना तमासा नहीं है।
१९५. संत गोरखनाथ के जन्म की कथा:-
गोरखनाथ जी गोबर से पैदा हुऐ थे। एक स्त्री को भभूत दी थी खाने को। उसने घूरे (कचड़े) में गोबर में डाल दी। जब उधर कभी आये बोले - मुछन्दर नाथ जी (की) भभूत खाई? उसने कहा डाल दी। बोले कहाँ डाली, तो उसने बताया। हटाया तो प्रकट हो गये गोबर से।
१९६. विवाह में आयु, आपस में मेल, सन्तान जोग, गुण, वरन जानने की जरूरत है। जल्दबाजी या ठीक मिलान न करने से बाप व बीच बाले को नरक होता है।
१९७. दिखाऊ काम भगवान को पसन्द नहीं। दुनिया जनाने (को बताने) से भगवान के यहाँ लिखा नहीं जाता न भगवान खुश होते हैं ।
१९८. आँख के देवता सूर्य हैं। ग्रह खराब होने से बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं। साल में जन्म-पत्री दिखाकर जप-दान कर दे जरूर। जप में अब हम खिचड़ी नमक, लकड़ी का दान औकात माफिक करवा देते हैं। जिनके पास पैसा नहीं - चिड़िया को चावल, चींटी को आटा बता देते हैं - कल्याण हो जाता है।
१९९. रामदास नागा बाबा, पंजाब के रहने वाले थे। माता का नाम अन्नपूर्णा, पिता का नाम महादेव था। एक बार यह ऋषीकेष में गंगा जी में कूद परे। तीन माह बाद निकले। शरीर में काई लग गई थी। यह जल में जल, मिट्टी में मिट्टी, वायु में वायु, अग्नि में अग्नि हो जाते थे।
२००. जो कहते हैं - हम, हमार नात-भाई, परिवार ठीक रहे, दुनिया मरे हमें क्या - उनका भला नहीं होता। जो दूसरे का भला करता है, उसका भला होता है।