॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १४ ॥ (विस्तृत)
२०१. लखीमपुर में भुइपुरवानाथ महादेव रामजी के पुरिखा (पूर्वज) के स्थापित किये हैं।
२०२. सबके दु:ख से दुखी, सबके सुख से सुखी-तब भगवान खुश रहते हैं। ऐसा काम करो, भगवान खुश रहें-आशीर्वाद हो गया।
२०३. कामी, क्रोधी की गती हो जाती है, पर सूम (कंजूस) की गती नहीं होती।
२०४. जिसका जाहे से प्रेम हो, उसके उसी से पट खुल जाते हैं।
२०५. जब तक आंखी कान नहीं खुलते, तब तक क्रोध आता है। तुकाराम के दो स्त्री थीं। एक दुष्ट थी उसका ज्यादा आदर करते थे। जो बैर मानता उसकी गती नहीं होती। बैर न मानो किसी से।
२०६. हमनें दो गऊ की कसाइयों से रक्षा की है। एक कसाई दो गऊ ले जा रहा था। हमनें पूछा, कितने की लियो हो? बोला ६०रू की। तो हमने कहा ले लो। बस गऊं हमारे साथ चल दीं।
२०७. हम कुत्ते के बच्चे को दूध से रोटी मल कर खिलाते थे। बिसखुपड़ा (बड़ी जंगली छिपकली), बिच्छू सब जीवों पर रक्षा करते थे।
२०८. अयोध्या जी में चमार, पासी, मेहतर की टट्टी साफ करते, कपड़ा पहना देते थे। घर वाले घृणा करते थे। हम उठा लाते, टट्टी साफ करते।
२०९. एक गदही के कीड़ा पर (पड़) गये थे। अपने हाथ से दवा बना कर दे आये। दूसरे दिन पूछने गये, कुछ लाभ हुआ।
२१०. जहाँ लड़ाई झगड़ा हो वहां पर न खड़ा हो।
२११. किसी के लिये कहा:
यहाँ आने से लाभ न होगा - न तुमसे प्रेम, न हमसे प्रेम, न मृत्यु का भय है। चार अक्षर का शंकर जी का मंत्र ११ माला मन लगा करैं तब लाभ होगा। खान पान शुद्ध सादा हो।
२१२. साधक बहुत कम बोले। कोई पूछे, जरा सा बोल दे।
२१३. उपदेश समझावे नहीं किसी को, जब तक अन्दर के आँखी कान न खुलें। सब दिखाऊ काम हो रहा है। ढोंग भगवान को, हमें पसन्द नहीं।
२१४. समय हो और लापरवाही करै तो नागा (अनुपस्थिति)। समय न मिले तो नहीं नागा में कटता। कोई आवै, घर में कहला दो वह स्वागत करै। नेम-टेम छोड़ देने से शरीर नहीं चमड़ा रह जावेगा। सब चौपट।