॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल २१ ॥ (विस्तृत)
३०१. भक्तों की यात्रा का पद लिखाये देते हैं। और वहाँ का बरनन कबीर दास जी का है, चारों वैकुण्ठन का। उसे देख सकते हैं। हमें लिखने में तकलीफ होती है। बोल नहीं पाते, अच्छर छूट जाते हैं। बहुत बातें भूल जाते हैं। और कमजोरी से इधर का उधर हो जाता है। यह बहुत विस्तार है।