॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल २६ ॥ (विस्तृत)
३४१. बेमन पाठ, पूजा, जप, कीर्तन, कथा सुनना या सुनाना भगवान के यहाँ खाता में नहीं लिखा जाता है। वह गैर हाजिरी में भर जाता है। साधू हो कर भेष बदनाम करवाता है। दया-धर्म नहीं, दीनता-शान्ति नहीं, मन काबू नहीं, तो देखाऊ भजन से कैसे पार होंगे। यह तो भूसा पछोरना हुआ। सूप से भूसा पछोरता है तो वह उड़ जाता है। जो पुराना संस्कारी है, उसे तो भगवान जल्दी मिलते हैं। सादा भोजन सतोगुणी करना चाहिये। तमोगुणी भोजन से भजन नहीं हो सकता। तमोगुणी क्रोध बढ़ाता है। रजोगुणी (लहसुन, प्याज, मिरची, कड़ू मूली) काम वासना पैदा करता है। यह भोजन नर्क ले जाते हैं। ईश्वर प्रेमी साधक इनको त्याग दे तभी भजन करके पार हो सकता है।
३४२. आगे (प्राचीन काल में) ऋषि लोग सेवकों को बताते थे कि शाम को ५ मिनट अन्नपूरना देवी, लक्ष्मीजी का नाम लेकर दिया बार (जला) दें हाथ जोड़ दें। सुबह अस्नान करके अन्नपूरना लक्ष्मी जी का नाम लेकर दाहिने हाथ से सामान निकाले, तो १० दिन का सामान १५ दिन का हो जायेगा। एक मूर्ति (जन) निकाले।
३४३. चारों धाम घूमों, मन शान्त न होगा। एक साधू ४५ वर्ष घूमें परन्तु मन में शान्ति नहीं आई। जब बड़े महाराज के पास आये, कहा - महाराज शान्ति न हुई, तब महाराज ने मंत्र दिया। बिना दीनता - शान्ति लाये, मन में शान्ति नहीं आती। बिना खता कसूर कोई मूते, थूके, क्रोध न करै, तब शान्ति मिलेगी।
३४४. (पाँचों) चोर मन काबू हो, वह कर सकता है। जिसका द्वैत घुसा है कि हम, हमारे परिवार वाले ठीक रहें, बाकी दुनिया मरै, हमसे क्या मतलब? वह शुभ काम, पर उपकार, दया धर्म नहीं कर सकता है। उसे ग्रन्थ दिखाना न चाहिये, व सुनाना बताना हानि है।
३४५. पर उपकार के समान कोई शुभ कर्म नहीं है। अपना तकलीफ सहे दूसरे को आराम पहँुचावे।
३४६. भजन चाहे जितना हो, दूसरे को यदि तकलीफ पहुँचेगी, तो सब व्यर्थ है।
३४७. हमसे दुर्गा जी ने कहा है कि शुभ काम में दिन कोई भी हो। तब से हम सब दिन (मंत्र) देते हैं। संसारी काम में साइत (मुहूर्त विचार) की जरूरत है।
३४८. दो साधु थे, एक राम-राम दूसरे श्रीराम-श्रीराम जपते थे। श्री राम जपने वाले ने कहा - श्री लगा लिया करो। वे बोले - श्री लगावें, राम न निकल पाये, शरीर छूट जाय, तो?
३४९. बढ़िया भोजन, बढ़िया कपड़े से भजन न होगा।
३५०. तपसी जी की एक आदमी ने दाढ़ी, मोछ नोच ली, खून बहने लगा। महाराज बोले - का खैहो (क्या खावोगे) भाई? यह भजन है।
३५१. बड़े महाराज की एक ने अँगुली चर चर चबा ली। महाराज बोले - मिठाई खवाओ, भाई।
३५२. नेक कमाई का अपना सादा भोजन करे, सादे कपड़े पहने, सब जीवों पर दया करै - तब भजन होगा।
३५३. सत्य पकड़े बिना सत्य की प्राप्ति नहीं होती।
३५४. चमार, पासी, मेहतर सबके चूतर धो डाले। जिनके लड़का मलमूत्र करते, मां बाप घिनाते। कहते - महाराज, भगवान उठा ले। मारे बदबू के दिमाग फटा जाय। उसके हम टट्टी उठाते, साफ करते।
३५५. कसाई भूखे रहते, महाराज कहते दे आओ। सबमें भगवान हैं। अपने को नीचा समझने से ऊंचा उठ पाता है।