॥ शाँति की बालू दीनता का जूना बरतन मलने का निमूना॥
पद:-
बरतन माँजौ पांचौं।
अपने गुरु से भेद जानि कै इन से मन लै टांचौ।
तब यह तुमको डरैं हमेशा राम नाम रंग राचौ।
बालमीकि भागवति औ मानस श्री गीता को बांचौ।
वेद शस्त्र उपनिषद सांगिता यही कहत हैं सांचौ।५।
शान्त दीन बनि तन में घुसि कै राम सिया को जांचौ।
नर तन सुफ़ल करौ जियतै में चन्द रोज का ढांचौ।
मरना पैदा होना छूटै फेरि न जग में नाचौ।
जो नहिं मानो सुर मुनि बानी मिलै न कौड़ी कांचौ।
या से चेति क अजर अमर हो बरतन मांजौ पांचौ।१०।