२४० ॥ श्री वली शाह जी ॥
पद:-
बैर करै जो कोई तुम से तो तुम उसकी खैर करौ।
इस प्रकार संसार में रहकर अपने तन में सैर करो।
देखौ सुर मुनि दर्शन देवैं सब के खुश ह्वै पैर परौ।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख राजैं जियति तरौ।४।
शुभ कारज करिये तन मन से दुख आवै तबहूँ न डरौ।
नाम कि धुनि पर लगी रहै लौ निर्भय हो टारे न टरौ।
यह बिधि जानि श्री सतगुरु से अपने हिरदय माँहि धरौ।
वली शाह कहैं भिच्छा करिकै भक्तौं अपना उदर भरौ।८।