॥ श्री अन्धे शाह जी ॥
(महाराज द्वारा लिखित बिनय श्री आदि शक्ति श्री सीता जी की)
जै राम रानी सुर मुनि बखानी है तेरी महिमा अपार माता।
करो अब दाया निर्मल हो काया सुनो यह मेरी पुकार माता।
जनम का अन्धा न कोई धन्धा जगत में बन्धा निशार माता।
पढ़ा नहीं कछु लढ़ा नहीं कछु गढ़ा नहीं कठु गंवार माता।
यह चोर सारे बड़े करारे हमेशा करते शिकार माता।५।
है मन यह पाजी उन्हीं से राजी भरा है इसके अहंकार माता।
करे जो नेकी उसी को छेकी यह टेक टेकी बघार माता।
यह पाप गट्ठा बड़ा है कठ्ठा लगा के चठ्ठा उतार माता।
जगत की बातें न फिर हम कातें यह सब हैं कूड़ा कबाड़ माता।
यही बकतीं सदा नचातीं बड़ा है इनमें गुबार माता।१०।
बिना भजन के जगत में भिनके है उनका जीना धिक्कार माता।
यह तन के द्वारे नओ निहारे भरा है इनमें बिकार माता।
कहीं से मल और मूत्र जारी कहीं से जारी है लार माता।
यह अर्ज मेरी करो न देरी मैं तो हूँ तेरा कुमार माता।
दे दिब्य लोचन भव ताप मोचन भक्ती का रोचन लिलार माता।१५।
अजर अमर तन बारह बरस बन न शीत ऊषन उदार माता।
न कोई आशा न भूख प्यासा सदा हुलासा संवार माता।
बतादे संन्तर चलूँ निरन्तर परे न अन्तर एक तार माता।
रहे षट झाँकी सन्मुख में बांकी हमेशा टांकी दिदार माता।
कबि कोबिद ज्ञानी औ जोगी ध्यानी है, तेरा अद्भुत दरबार माता।२०।
जिस हेतु आवे वही सो पावे अटूट तेरा भंडार माता।
दया की सानी तिहारी बानी न जिसने जानी भा ख्वार माता।
अनन्त बिनती करे को गिनती खुद आप सुनती निहार माता।
जो नेमी टेमी भये हैं प्रेमी उन्हीं को यह सब सुतार माता।
थपक थपक कर दे पीठ ऊपर उठा के गोदी बिठार माता।२५।
रहूँ न कच्चा बनूँ मैं सच्चा कहाऊँ बच्चा तुम्हार माता।
खिला ले हंसि हंसि लगा के उर में जरा दे ऊपर उलार माता।
निरख निरख के मजे मे दोउ कर लगा दे गालों चुचकार माता।
लिटा के जाघौं प गुद गुद दे लगूँ मैं करने किलकार माता।
मुख चूम करके पिला दे अमृत यही है सच्चा दुलार माता।३०।
तरंगैं आवें कहीं न जावें तप धन क है यह सिंगार माता।
अन्तर है जाऊँ सब लोक धाऊँ करे न कोई तिरस्कार माता।
तव जस को गाऊँ सबन सुनाऊँ सकै न कोई तुकार माता।
धुनि नाम लय तेज हो चमा चम लखूँ मैं अद्भुत बहार माता।
खरी़दँ सौदा अनमोल घौदा लगी जो घट में बजार माता।३५।
जो दीन आवें उसे बतावें खुल जाय उसके किंवार माता।
मिलै उन्हैं फल न जिनमें है छल लगै न नेकौं अबार माता।
कुल हीन दुखिया वही है सुखिया भक्तों में मुखिया ज़रदार माता।
अनमोल नर तन समय औ श्वाँसा है देवों को भी दुशवार माता।
इसी से बिगरे इसी से सुधरे इसी से डगरे निज द्वार माता।४०।
जे मन के बस में जगत के रस में धरम को डारा बिगार माता।
नरक में फटकें कसा कसी में न कल है पल भर चिक्कार माता।
बिमुख जे तुम से सुखों को तरसें दुखों को भोगें बिखार माता।
जे मित्र यहँ पर वे शत्रु वहँ पर करावें फ़ौरन गिरफ्तार माता।
नर नारि सुनिहैं पढ़ कर के गुनि हैं तभी तो होगा निस्तार माता।
यह अन्धा द्वारे पड़ा तिहारे सदा सहारे सम्हार माता।४६।
दोहा:- सब इन्द्री तुम्हरी वहाँ नर तन लेवें धार।
जारी........