साईट में खोजें

॥ जीवनी श्री अन्धे शाह जी महाराज ॥

 दोहा:-

सिद्धि सदन गणनाय कै बार बार शिर नाय।

अन्धे कह जो हम कहैं सुनिये तन मन लाय।

 

चौपाई:-

जन्म का अन्धा औ अज्ञानी। पढ़ना लिखना केहि बिधि जानी॥

सीता मढ़ी मोर स्थाना। कोइ कहै तुर्क कोई मुसलमाना॥

धुनिया जाति कोइ कहै बेहना। अलग अलग सब जाति क कहना॥

बारह वर्ष बयस जब भयऊ। मात पिता स्वर्गै चलि गयऊ॥

इधर उधर मांगैं औ खावैं। हमें अभागी सब बतलावैं।५।

 

कोइ कोइ हमको धक्का देवैं। गिरैं उठैं बैठैं दुख सेवैं॥

लागै चोट रुधिरं तन आवै। कोई दयावान लखि धावै॥

पोंछै रुधिर देय नहवाई। चोट में देवै तेल लगाई॥

कोइ कोइ नये वस्त्र पहिरावै। कोई छोरि क लै भगि जावै॥

फटे पुराने कोई लावै। पहिरै जाड़ लगै कपि जावै।१०।

 

या बिधि गुजर करैं दिन काटैं। बहुतेरे निरखैं औ डाटैं॥

संस्कार थे ठीक हमारे। कबहुँ कुपन्थ नहीं पग धारे॥

शान्त दीन ह्वै सब सह लीन्हा। समय पाय प्रभु दाया कीन्हा॥

हर हनुमान से बिनती कीन्हा। राम नाम दोऊ स्वामी दीन्हा॥

कछु दिन सुमिरेन हम मन लाई। शिव बजरंग प्रगट भे आई।१५।

 

सिया मातु से दीन्ह मिलाई। माँगेन जौन तौन दियो माई॥

या बिधि अन्ध सुखी भा भाई। सो सब आप को दीन्ह बताई॥

भजन करै तन मन हरषाई। वाकी सब दिशि भली भलाई।१८।