॥ श्री चालीदास जी का कीर्तन ॥
जारी........
राघौ केशव गोविन्द भजिए सीता कमला राधा।
चाली कहैं देव मुनि बानी काटै कोटिन बाधा।
माधौ रघुपति जदुपति भजिए लछिमी राधे रामा।
चाली कहैं मिलै तब निज घर सुफ़ल भयो नर चामा।८।
दोहा:-
दया धर्म हिरदय धरै दीन बने गहि शाँति।
चाली कह तेहि भक्त की छूटि जाय सब भ्राँति।३।
कीर्तन:-
रसना रटि ले राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम।
चाली कहते सहश्रनाम सहश्रनाम सहश्रनाम॥
पद:-
क्रोध को है जिसने जीता वही सच्चा बहादुर है।
कहैं चाली सुनौ भक्तौं वही मेरा बिरादर है।
जियति ही सब किया करतल दोऊ दिसि उसका आदर है।
देव मुनि वेद की बानी न मानै तौन कादर है।४।
शेर:-
निरादर उसका दोनों दिसि जो आलस नींद में रहेता।
कहैं चाली तजै तन जब तो जा कर नर्क में ढहेता।
सत्य का मार्ग जो गहेता वही सच्चा भगत जानो।
कहैं चाली उसे जियतै मुक्ति औ भक्ति भा ज्ञानो।४।
दोहा:-
साँचा झूँठ को झूँठ मानता झूँठा झूँठ को साँच।
चाली कहैं अन्त में जम गण आय के लेते टाँच॥
छन्द:-
शुभ कारज करि लेव जियत में कर्म की भूमी बनी यही।
चाली कहैं पदारथ चारिउ इसी रीति से मिलत सही॥