॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(१२)
पद:-
न हो जुरमाना न हो रिहाई न हो सुनाई सच्ची अदालत।
कहैं ये अंधे करम हों जैसे वैसी तुम्हारी वहां हो हालत।
उठाये खाता सुनावैं तुमको यहां की सारी कसर निकालत।
अधर्म सब भरा है खाता गुस्साये बोलैं तुझे है लानत।
वहां पै जमदूत करैं मरम्मत घसीट करके नरक में डालत।५।
सहोगे नाना प्रकार के दुख बिना भोगाये नहीं निकालत।
दया की बानी न कोई जानै जगह जगह पर हैं दूत टहलत।
कई तरह के हैं अस्त्र बांधे जो काटि डारैं औ तन को चालत।८।
दोहा:-
सिंह श्वान कागा वहां गीध औ बिच्छू सांप।१।
अंधे कह देखत डरौ सब तन जावै कांप।२।
निज स्वभाव सम दु:ख दें कहूँ लगि को कहि पाय।३।
अँधे कह हरि को भजै सो काहे वहँ जाय।४।
दोहा:-
दुखद संदेस कह अंधे सुखद हरि नाम जपि जानो।
करो सतगुरु मिलै मारग नहीं तो होगा पछितानो॥
पद:-
शिकार राम नाम जपि खेलो शिकार।
सतगुरु से सब भेद जानि कै चोरन डारो मार।शिकार।
ध्यान धुनी परकाश समाधी कर्म करै दोउ छार। शिकार।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सब मुख लो दीदार। शिकार।
सुर मुनि मिलैं उछंग उठावैं बोलैं जै जै कार। शिकार।
अमृत पियो सुनो घट अनहद बाजत जो एक तार।शिकार।५।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं महक उड़ैं निशिवार।शिकार।६।
जियतै तरो औ तारो भक्तों निज कुल का यह कार।शिकार।७।
अंधे कहैं अंत निज पुर हो बैठि जाव चुप मार। शिकार।८।
खाना पीना सोना हगना। शुभ कारज सुनि के चट भगना।
अंत समै जम करि हैं टंगना अंधे कहैं कवन का ढगना॥
पद:-
हरि सुमिरन में लागो माया के बच्चा।
सतगुरु करो जाप बिधि जानौ चोरन बांधि के टाँगौ। मा....।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने तागौ। मा....।
सुर मुनि लाय खिलावैं तुमको दिब्य स्वहारी सागौ। मा....।
अदभुद लीला हर दम होवै तन मन प्रेम से पागौ। मा....।
अंधे कहैं अंत साकेतै चढ़ि बिमान पर भागो। मा.....।६।
दोहा:-
अंधे कह सतगुरु करो, मिलै न ऐसा दाँव।
राम नाम को जानि कै लुचिई बूरा खाव॥
पद:-
तपस्या में जे चूके हैं वही जग राज्य पद पाया।१।
प्रजा को पुत्र सम पाला तो फिर बैकुंठ को धाया।२।
न माना नर्क को पहुँचा महा दुख धूप नहिं छाया।३।
कहैं अंधे सबी सुर मुनि यही सिद्धान्त बतलाया।४।
पद:-
सतगुरु करि सुमिरौ राम नाम जा को सुर मुनि सब जपत रोज़।
धुनि खुलै अखण्डित र रंकार घट भीतर घुसि कै करौ खोज।२।
अमृत पीकर हो सूर बीर अनहद सुनि सुनि कै बढ़ै मौज।३।
सन्मुख में राजैं सिया राम अंधे कहै जग सुख चंद रोज।४।
पद:-
अन्धे कहैं हर दम मगन जिनकी लगी हरि से लगन।
ध्यान धुनि परकाश लय सब मुख में रहते नन्द ललन।
मुरली अधर धरि फूँकते क्या छेड़ते सुन्दर भजन।
झुकि झूमि कूदि के नाचते मुस्कयाय मम दिसि करि दृगन।
घुंघुरुन में नग कई रंग के चमकैं चमा चम दोउ पगना।५।
जारी........