॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
ऐसे छमा छम बाजते सुनि सालिये रोवन रगन।
सतगुरु करो मारग गहौ चलि लेव अब सच्चे ढंगन।
घृत अगनि बाती के बिना बरता दिया अद्भुत गगन।८।
पद:-
मौत औ भगवान को डरता नहीं सो दुष्ट है।
पाप करने में समझलो हृदय उसका पुष्ट है।
हर समय मन चोर उसके संग बांधे गुष्टि है।
अंधे कहैं सुर मुनि सबी उसके करम पर रुष्ट हैं।
तन त्यागि नर्क में बास ले जम ठोकते कहैं भृष्ट है।
हर समय रोते फटकते घोर निसि अति कष्ट है।६।
पद:-
चोर तन में बलबलाते मन भि उनका दोस्त है।१।
अंधे कहैं मान नहीं हर वक्त नोचत गोस्त है।२।
दिल्लगी उनके लिये संकट में बाझे प्राण हैं।३।
अंधे कहैं सतगुरु करै हरि को भजै कल्याण है।४।
शेर:-
खाने पीने सोने का तो नारि नर को ज्ञान है।५।
दाया धरम हरि भजन मे कहते बिहंसि अज्ञान है।६।
यह जबरदस्ती की बातैं पकड़ै सान औ मान है।७।
अंधे कहैं देखत मरत दिन चारि के मेहमान हैं।८।
पद:-
जब पाप सारे नाश हों, तब दर्श हरि के पास हों।१।
जब एक हरि की आस हो, तब तो वह सच्चा दास हो।२।
जब नाम लय परकाश हो, अंधे कहैं घर बास हो।३।
सतगुरु के ढिग जब पास हो, छूटै गरभ की फांस हो।४।
दोहा:-
जै देवी जै देव सब जै ऋषि मुनि जै भक्त।
अंधे कह जै चर अचर राम रमे सब जक्त॥
शेर:-
बैर को निर्बैर करना भक्त ही का काम है।
अंधे कहैं जै कार उसका दोनो दिशि में नाम है॥
पद:-
जो तुमरी करै बुराई। तुम वाकी करो भलाई।१।
अंधे कहैं जग जस छाई। हरि पुर में पहुँचौ जाई।२।
या की है यही दवाई। जो खाई सो सुख पाई।३।
नहिं बार बार चकराई। दुख की संग लागी काई।४।
शेर:-
भगवान में सब वस्तु है सब वस्तु में भगवान हैं।
अंधे कहैं जानै वही जिनके नैन औ कान हैं॥
पद:-
घर में चोर करत फरसाद।
ऐसे ल्यौकर मन कियो नौकर क्या इनको मिलता है स्वाद।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सब होवै बरबाद।
सुर मुनि मिलैं छकै घट अमृत बाजै अनहद नाद।
राम सिया हर दम रहैं सन्मुख चढ़ि जावै उन्माद।५।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पाय होय उस्ताद।
अंधे कहैं अंत निज पुर हो छूटै बाद बिबाद।
जियतै करतल करिये भक्तौं तन की क्या तादाद।८।
पद:-
मुदित मन उसका है भक्तौं लखै सिय राम को हरदम।
छटा सिंगार छबि अनुपम कहैं अंधे कथें क्या हम।
नाम की धुनि जो होती है सुनै हर शै से क्या राम सम।
तत्व पाँचौं के रंग दरसैं लम्बे चौड़े गोल चम चम।
करै सतगुरु तरै जियतै शांत ह्वै कर रहै नम नम।
देव मुनि आय कर भेटैं रहै जब तक जगत तन दम।६।
पद:-
पूजन भजन देखाऊ करते दया धर्म पर पग नहिं धरते।१।
ऐसे कोमल बचन उच्चरते सुनि सुनि प्रानी चरनन परते।२।
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