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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(६)

दोहा:-

अंधे कहै अंत निज पुर हो मिटै मर्म की आंचौ।

 

दोहा:-

सान मान में मस्त हैं छूटि सकत नहिं गस्त।

अन्धे कह हरि भजन बिन होंय नर्क में पस्त॥

 

पद:-

करो सतगुरु चलो भक्तों साफ़ साकेत का रस्ता।

ध्यान धुनि नूर लै होवै फटै आलस का तब बस्ता।

प्रेम में राम सीता की छटा सिंगार छबि फंसता।

हर समै सामने राजैं लसै सो हो गया मस्ता।

दीनता शान्ति जो पकड़ै उसे तो है सुगम सस्ता।

कहैं अंधे छोड़ि तन को जगत में फिरि नहीं धंसता।६।

शेर:-

न चलता है न हंसता है अटल निज धाम बसता है।

कहैं अंधे बचन सतगुरु के मानै प्रेम फंसता है॥

 

पद:-

बहार बिलकुल गलत जहां की यह चन्द दिन में रफ़ा सफ़ा हो।१।

करो तो सतगुरु भजन को जाना कहैं ये अंधे बड़ी नफ़ा हो।२।

धुनि नाम लै तेज हो चमा चम सिय राम झाँकी सन्मुख सफ़ा हो।३।

तन त्यागि करके चलो अवध पुर कभी न तुम पर लगै दफ़ा हो।४।

 

पद:-

सतगुरु करो सुमिरन सिखो दोनों तरफ़ में गुजरा हो।

सिया राम के बच्चा बनो अंधै कहैं क्या सुघर हो।

सिंगार छबि अद्भुत छटा कोमल बदन हो श्याम तन।

साकेत में बैठो बयस बारह बरस हर दम मगन।

जियतै में तै कर लेय जो सो जान लो तारै सही।

पढ़ि सुनि कथै सो चूकिगा जन्मै मरै सुख हो नहीं।६।

 

पद:-

समय श्वांस तन दुर्लभ पाये सूरति शब्द पै तागु रे।

राम नाम जपु राम नाम जप राम नाम जपु जागु रे।

सतगुरु करि सब भेद जानि। ले चोरन को गहि टाँगु रे।

अनहद सुनो छकौ घट अमृत सुर मुनिके संग लागुरे।

कमल चक्र शिव शक्ति जागै छूटै कुल का दागु रे।५।

 

जियति जान कै तरौ औ तारौ मुक्ति भक्ति में पागु रे।

सिय राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख झाँकी तागु रे।

अंधे कहैं अन्त साकेतै चढ़ि सिंहासन भागु रे।८।

 

दोहा:-

जन्म मरन में नाचते रहते सदा अनाथ।१।

अंधे कह सतगुरु करै सुमिरै होय सनाथ।२।

करामात सब माथ में करि लेवै जो हाथ।३।

अंधे कह तारे तरै सन्मुख सिय रघुनाथ।४।

 

पद:-

संसार की बू में फंसे सरकार की खुशबू कहाँ।१।

अंधे कहैं सच्चे भगत थोड़े लखे हम ने यहां।२।

ज्ञान मत्थे का कथैं हत्थे में तो है नहिं गहा।३।

अन्त नर्क में बास हो निज कुल का धरवाया नहीं।४।

दोहा:-

प्रेम होय जब एक रस खुलि जांय आंखी कान।

अंधे कह बजरंग