॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
अमृत पियो सुनो घट अनहद सुर मुनि बोलैं वाह।
हर शै से धुनि रेफ़ बिन्दु की सुनि बाढ़ै उत्साह।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ अंधे शाह गवाह।६।
शेर:-
पढ़ि सुनि के ज्ञान देना उसमें जान नहीं है।
अंधे कहैं वह हरि पुर कुरबान नहीं है।
पद:-
श्रवन न सुनते नैन न लखते रसना मुख नहिं बोलत चाम।
अन्धे कहैं सुनत औ देखत बोलत आपै राम।
अनुभव बिना खुलैं नहिं घट पट सतगुरु करि पथ थाम।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि सन्मुख सीता राम।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं गमकैं लो बसुयाम।५।
अनहद बजै अमी रस चाखौ सुर मुनि मिलैं तमाम।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ जो है अचल मुकाम।
सब में रमें बिलग हैं सबसे सब आपै का काम।८।
पद:-
सतगुरु की शरनि जे जन तन मन से जाँयगे।
अंधे कहैं ते मुक्त ह्वै भक्ती को पाँयगे।
सुर मुनि मिलैं उन्हैं नित हरि जस सुनायँगे।
तन छोड़ि लेंय निजपुर जग में न आँयगे।
अमृत पिये अनहद सुनै मन में सिंहायगे।५।
नागिनि जगै चक्कर चलैं कमलन खिलाँयगे।
धुनि राम नाम तेज लै चलैं कर्मन कटाँयगे।
सिया राम की अद्भुद छटा सन्मुख में छाँयगे।८।
पद:-
कमा लिया है कमाना जो था। जमा किया है ख़ज़ाना जो था।२।
लुटा दिया है लुटाना जो था। बचा लिया है बचाना जो था।४।
चुका लिया है चुकाना जो था। मिला लिया है मिलाना जो था।६।
चेता दिया है चेताना जो था। लिखा दिया है लिखाना जो था।८।
भगा दिया है भगाना जो था। बसा लिया है बसाना जो था।१०।
सतगुरु किया है मन माना जो था। अंधे कहा है सुनाना जो था।१२।
पद:-
सिफ़ारस नाम की हलि है। जो सतगुरु के बचन पलिहै।२।
कहैं अंधे न फिरि खलि है। त्यागि तन निज वतन चलिहै।४।
पद:-
भक्तौं श्याम बड़ा अलबेला।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानौ बनिकै सच्चे चेला।
देखौ नाना चरित मनोहर सुर मनि के संग मेला।
दूध दही माखन औ मिश्री देवैं भरि भरि बेला।
खाते बनै स्वाद को बरनै अजा जोर भे फ़ेला।५।
अनहद सुनो अमी रस पावो गगन ते बरसत रेला।
कमल चक्र शिव शक्ती जागै सब लोकन चलि पेला।
नाम की धुनि परकास दसा लै कर्म शुभा शुभ ठेला।
अन्त त्यागि तन निज पुर बैठौ छूटै जग का खेला।
अंधे कहैं जौन नहिं चेतै होय बाट का ढेला।१०।
पद:-
बीरु पीवो नाम की भव का रोग नशाय।
अंधे कह तन छोड़ि कै बैठौ निज पुर जाय।
बैठो निज पुर जाय वहीं है देश तुम्हारा।
वेद शास्त्र युग देव मुनी सब कीन पुकारा।
अंधे कहैं सुनाय जाय कोइ बिरलै प्यारा।५।
भक्तन हित सिय राम धाम अनमोल सँवारा।
अकह अलेख अटूट है बे अधार साकेत।
अंधे कह पहुँचै वही जो सतगुरु करि चेत।
जारी........