॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
अन्धे कहैं जियति जे तरिया। सो नहिं आवें लौटि नगरिया।१२।
दोहा:-
सतगुरु के चेला बने, बचन पै नहिं विश्वास।
अन्धे कह वे सब गिरैं, ह्वै गे सत्यानाश।
सतगुरु करि चेला भये, वाक्य पै नहिं पतियांय।
अंधे कह वे भ्रष्ट भे, बार बार चकरांय।
सतगुरु के बनि शिष्य गे, कीन्हे पाप महान।
अन्धे कह वे तरि गये, बचन लीन जिन मान।६।
पद:-
बिना भजन के अनमोल काया कहैं ये अंधे बे काम की है।१।
जगत के सुख सब दुखों में साने न आस पूरी नर बाम की है।
करैं जे सतगुरु मन रोक लेवें आनन्द उनको बसुजाम की है।
लय ध्यान औ तेज हो लपा लप अखन्ड धुनि होत हरि नाम की है।
अदभुद छटा छबि अलबेली जोड़ी सन्मुख में हर दम प्रिय श्याम की है।
तन छोड़ि कर के चढ़ै सिंहासन डगर खुली साफ़ निज धाम की है।६।
पद:-
मन मुन्सी मानत नहीं पांच सिपाही संग।
झूठी लिखत रिपोर्ट नित जीव होत है तंग।
जीव होत है तंग छोड़ि तन नर्क को जावै।
ऐसा नमक हराम दया नेकौ नहिं आवै।
शुभ कामन पर लीक मारि कहि फीक भगावै।
सतगुरु बिनु कह अन्ध शाह को बस करि पावै।६।
पद:-
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि में भक्तों कोई भेद नहीं।१।
सुर मुनि वेद शास्त्र युग वरन्यो नेक कियो कोई खेद नहीं। २।
सब में षट झाँकी परि पूरन देखि परत कोई छेद नहीं।३।
अंधे कहैं नैन श्रुति खुलते तब सब कहत लवेद नहीं।४।
पद:-
गीता रामायण का अर्थ। जानि जाय नहिं होय अनर्थ।
ज्ञान भक्ति बिन नरतन व्यर्थ। अंधे कहैं कह्यो जड़ भर्थ॥
दोहा:-
राम कृष्ण और विष्णु संग जौन भक्त बतलाय।१।
सीता राधे औ रमा, दें नित हब्य पवाय।२।
हरि सुमिरन जे करते भक्तौं वे सब पहुँचैं ऊंचे।३।
अंधे कहैं जे चेतत ना ही ते सब जावैं कूचे।४।
पद:-
आना औ जाना लगा रहा तब भजन कहाँ वह जेल हुआ।
कहैं अन्धे शाह सतगुरु से शब्द लै गया लागि नहीं फेल हुआ।
अनहद सुनता अमृत पीता सुर मुनि के सँग सुख खेल हुआ।
धुनि नाम प्रकास समाधि जानि सिय राम से हर दम मेल हुआ।
बनि शान्ति दीन विश्वास गहा मन उसका आपै तेल हुआ।
सर्वत्र उसे मुद मंगल है तप धन का रेला रेल हुआ।६।
पद:-
राम हित उठै बिरह की पीर। कहैं अंधे हर दम रहै तीर।
करौ सतगुरु हिरदै धरि धरि। शांति मन आपै होवै कीर।
जाव तब जियते में बनि बीर। भागि जाय चोरन की तब भीर।
ध्यान परकास धुनी गंभीर। दसा लै काटै कर्म लकीर।
पवावें सुर मुनि पूरी खीर। पिलावें श्री गंगा का नीर।
करै जो जियति यही तदबीर। होय बे फ़िकिर के तौन फ़कीर।६।
पद:-
सतगुरु से सुमिरन जानि कै मन ठीक करना सीख लो।१।
अंधे कहैं बनि दीन जावो शांति से यह भीख लो।२।
सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो अमृत गगन से चीख लो।३।
नाम धुनि परकास लै सिय राम सन्मुख दीख लो।४।
सोरठा:-
सतगुरु से बिधि सीख सुमिरो भक्तों नेम से।
मिलै नाम की भीख, रहौ सदा तब छेम से।१।
सुर मुनि देवैं ईंख, चूसौ तन मन प्रेम से।
जारी........