॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
पद:-
राम नाम सब सुख का नगर है। सतगुरु करि जो गहत डगर है।२।
हर दम सन्मुख वाके लंगर है। श्याम स्वरूप अनूप सुघर है।४।
मुरली सोहत जा के अधर है। अन्धे कह दोउ दिसन गुजर है।६।
पद:-
राम को हेरन जात कहाँ को वै तो पास बिराजत हैं जी।
सतगुरु से जप भेद जानि कै तन मन को जे मांजत हैं जी।
सुर मुनि नित प्रति मिलन को आवैं अनहद घट में बाजत है जी।
नाम की धुनि परकास समाधी कर्म रेख को रांजत है जी।
निज कुल की मर्याद यही है और कछु नहीं छाजत है जी।
अंधे कहैं अन्त निज पुर हो फेरि गर्भ नहिं भाजत है जी।६।
पद:-
मन लगा नाम में किसका हो। सतगुरु है सच्चा जिसका हो।२।
शुभ कर्मन में कर तन किसका हो। कहिं पता नहीं मिलै रिसि का हो।४।
सब छूटे जगत के चिरका हो। कहैं अन्धे भया दोउ दिशि का हो।६।
दोहा:-
अन्धे कह सतगुरु करै देवै भेद बताय।
राम नाम में मन रमै चोरन नहीं बिसाय॥
पद:-
इस देस से छूटा चहो उपदेश ऊपर का गुनौ।१।
अन्धे कहैं सतगुरु करौ बस नाम की धुनि को सुनौ।२।
ध्यान तेज समाधि हो सब बासनाओं को भुनौ।३।
देव मुनि आवैं मिलन षट रूप सन्मुख में चुनौ।४।
शेर:-
इज्ज़त चहौ हुज्जत तजो सतगुरु करो हरि नाम लो।
अन्धे कहैं लज्ज़त वही सब सुख की भक्तों खान लो॥
पद:-
अजलखड़ी सिर गजल सुनाती नाच दिखाती भाव बताती।१।
सतगुरु करौ भजौ दिन राती बार बार है यही चेताती।२।
हरि सुमिरन बिन हम लै जाती जन्म मरन की छुटै न लाती।३।
अन्धे कहैं प्रेम रस माती वाकी हटी द्वैत की गाती।४।
पद:-
पावो राम नाम गुलगुला। कैसा सुन्दर लगै पुलपुला॥
सारे चोरन देत भुल भुला। भूख न मारै मरै चुल चुला॥
भूलि गया सब केर झुल झुला। सतगुरु करि मग जौन तुल तुला॥
सो नहिं गर्भ का बनै बुल बुला। अपने कुल का भया कुल कुला॥
नाम रूप रंग जो घुल घुला। अन्धे कहैं बचन छुल छुला॥
सच्चा हरि दरबार खुल खुला। दीन शान्ति बनि जाय फुल फुला।१२।
पद:-
सतगुरु से सुमिरन बिधि लै के तन मन प्रेम में माजैं।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने राजैं।
सुर मुनि लाय खिलावैं नित प्रति खीर औ दिब्य रसा जैं।
अमृत पियै सुनै घट अनहद मधुर मधुर क्या बाजै।
अंधे कहैं भक्त जो सांचे वाको यह सुख छाजै।
अन्त त्यागि तन निज पुर बैठे अमित भानु दुति लाजैं।६।
पद:-
सिय राधो रहत हैं पास हो। तुम लीन्हे जगत की आस हो॥
करो सतगुरु दीन बनि दास हो। कहैं अंधे छुटै जम त्रासहो॥
मिलैं सुर मुनि तुम्हें नित गास हो। अमी चाखो झरत बारो मास हो॥
जगै नागिन चक्र चलैं खास हो। सब कमल क होय बिकास हो॥
लय ध्यान धुनी परकाश हो। जहाँ रवि शशि न बारि बतास हो॥
निज धाम सब सुख रासि हो। तन तजि के अचल लो बास हो।१२।
पद:-
राम नाम की खा लोन बरिया। कैसी लगै बिचित्र सुन्दरिया॥
सतगुरु के चरनन सिर धरिया। सो यह पावै सुख की सरिया॥
सन्मुख लाला नन्द महरिया। अधर पै जाके धरी मुरलिया॥
छम छम नाचै करै नजरिया। धुनि परकास समाधि में परिया॥
दोनों करम होंय जरि छरिया। साँचे भक्तन केरि डगरिया॥
जारी........