॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
सतगुरु करो सुमिरन सिखौ दोनों तरफ़ हो जस खरा।४।
दोहा:-
हरि का जौहर देखिये मौहर रहे बजाय।
बन के जीवन धुनि सुनी पहुँचि गये हरषाय।
सब तन मन ते मस्त भे मनहु समाधि लगाय।
प्रभू तब बीन को दीन धरि रहे सबन स्वहराय।
ऐसी तनमैता भई जागत नहीं जगाय।५।
राम नाम आवाज दे श्याम ने दीन उठाय।
सब तुरतै चैतन्य भे रहै संग दुलराय।
कृष्ण प्रीति यह देखि कै नैन नीर झरि लाय।
मोहन सबको बिदा करि निज घर पहुँचे जाय।
अंधे कह ऐसी दया को कर सकत बड़ाय।१०।
सौहर सखियन के बनैं सब संग करैं हंसाय।
अंधे कह मानो बचन द्वैत न मन में लाय।१२।
पद:-
द्वैत न मन में लाय करैं हरि पूरन आसा।१।
निरगुन सरगुन बनैं जानि कै अपना दासा।२।
अंधे कहैं सुनाय भजौं है सब के पासा।३।
बिन सतगुरु है कठिन सत्य ये खेल तमासा।४।
मल्लाह तो अल्लाह है सल्लाह तुम उससे करो।
मुरशिद से कूचा जानि कै मन नाम की धुनि पर धरो।
अंधे कहैं अस्सी पैगम्बर मिलैं नित कदमन परौ।
आवै भिखारी दीन बनि बतलाय उसका दुख हरो।
दुःख सुख में सम रहौ सिद्धौं कि वाक्य से मति टरो।
सच्चा यही समझौ भजन जियतै तरो जियतै मरो।६।
दोहा:-
अल्ला तुमरे पास है पल्ला चहुँ दिसि दीन।
अंधे कहैं मुरशिद बिना खोलै को पर वीन।
गल्ला पासै में भरा भूखेन मरते लोग।
अंधे कह मुरशिद बिना मिलत नहीं संजोग।
खुद ही आइ के मिलत खोदा कहावै तौन।
अंधे कह मुरशिद करै भजै निरन्तर जौन।६।
शेर:-
मालिक को खालिक सम मानै सो है ठीक वजीर।
अंधे कहैं बिना मुरशिद के होय फ़कीर न पीर।
दोहा:-
मालिक से सालिस रहै सो है पीर फ़कीर।
अंधे कह मुरशिद करै सीख लेय तदवीर।
मौत कलेवा लेय करि अपने समै पै आय।
अंधे कह सुमिरन बिना चलै न और उपाय।
कान पकीर तोबा करै छोड़ै नहीं अजाब।
अंधे कह दोज़क पड़ै जान्यो नहीं सबाब।६।
पद:-
सतगुरु करो सुमिरन सिखो सार्टिफिकेट लो पास का।
अंधे कहैं हो प्रिशिपल छोड़ो जगत की आस का।
लखि दीन सिखला के सबक धुनि नाम लै परकास का।
खट रूप सन्मुख में लखौ तन तजि वतन लो बास का।
हर समय पितु मातु रखते ख्याल अपने दास का।
गर्भ का कर्जा चुका दुख छूट भव की त्रास का।६।
पद:-
अजपा जाप जपा नहीं जाता।
सतगुरु करि के भेद जान लो तब हो वा में ज्ञाता।
दीन शांति बन सुरति जमावो सुनो नाम भन्नाता।
ध्यान प्रकास समाधी होवै जो बिधि लेख मिटाता।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि परमानन्द के दाता।५।
जारी........