॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
मोर पंख के मुकुट शीश पर फूलन दल गुँथनैया लाल।
इतर फुलेल लगा केशन में महर महर महकैया लाल।
श्याम गौर परकास निकलती लपटि के करैं मिलैया लाल।२०।
तीन बर्ष के श्याम मनोहर पाँच बर्ष बल भैया लाल।
नाक में नासा मणी बिराजै कज्जल दृगन लगैया लाल।२२।
पद:-
बन्दौं सतगुरु बन्दी छोर।१।
जिन निज घर का मार्ग बतायो शांति भये मम चोर।२।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि हर शै से हो शोर।३।
अंधे कहैं हर समै दरशन छूटी जग से डोर।४।
शेर:-
कथा बाचक भयो लोभी तो उसकी गति नहीं होती।
कहैं अंधे ठगा मन ने हर समै बासना रोतीं॥
दोहा:-
खान पान सन्मान में जहाँ शुद्ध है अन्न।
अंधे कह वहँ साधकौं चित्त होत परसन्न।
अन्न शुद्ध औ भूमिका तब खुब सुमिरन होय।
अंधे कह सतगुरु बचन छूटि जात चट दोय।
पद:-
सतगुरु करि जानै घर की गली सो यहाँ भी है औ वहाँ भी है।१।
धुनि ध्यान प्रकास समाधि मिली सो यहाँ भी है औ वहाँ भी है।२।
सन्मुख सिय राम की झाँकी खिली सो यहाँ भी है औ वहाँ भी है।३।
कहैं अंध शाह यह बात दिली सो यहाँ भी है औ वहाँ भी है।४।
शेर:-
दिखाऊ भजन श्रद्धा बिन काम अपना नहीं सरता।
कहैं अंधे सुखी किमि हो जगत में जन्मता मरता॥
पद:-
विश्वास अटल जब तक न होय तब ही तक चक्कर खाँचौगे।१।
कहैं अंध शाह तब छुटकारा जब नाम के रंग में राँचौगे।२।
धुनि ध्यान प्रकास समाधी हो सिय राम सामने टाँचौगे।३।
अमृत पीकर ह्वै अजर अमर सुर मुनि संग हरि जस बाँचौगे।४।
पद:-
राम भजन बिन अऩ्त में अड़ बड़।१।
झूँठ पाप औ लोभ आलसै तुम्है दीन करि गड़बड़।२।
मन औ चोर शांति किमि होवैं करत हर समै खड़ भड़।३।
अधे कहैं करो अब सतगुरु सुमिरौ छूटै भड़ भड़।४।
पद:-
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानौ छूटै तब दुइ तरफ़ी।१।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप अमोल असरफ़ी।२।
अंधे कहैं पवावैं सुर मुनि लाई चूरा बरफ़ी।३।
अन्त छोड़ि तन निज पुर राजौ छूटी गर्भ की हरफ़ी।४।
पद:-
लीला स्वरूप सिय राम रूप कहैं अंध शाह सुर मुनि गावैं।१।
जब भाव होय तब हटै दोय विश्वासा अटल झट ह्वै जावै।२।
सतगुरु कि दया सो ठीक भया कोटिन में कोई सुख पावै।३।
जब भयो मस्त तब कटी गस्त हर दम सन्मुख में छबि छावैं।४।
पद:-
जो चित्र बने सब हैं बिचित्र कहैं अंध शाह सुर मुनि मानैं।१।
मन हो पुनीत तब हो प्रतीत यह बैन भक्त जन सच जानैं।२।
बोलत हैं चित्र कहि शुभ चरित्र जब कान खुलैं तब सुनि छानैं।३।
प्रगटैं सन्मुख में छाय जाँय जेहि नैन होंय सो पहिचानैं।४।
पद:-
राम नाम में मन जिन मसला।
सतगुरु से जप भेद जानि कै बनिये भक्तौं तसला।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने बसला।
अमृत पियो बजै घट बाजा सुर मुनि के संग हंसला।
जारी........