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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

हठ योगी लै जोगी ध्यानी। आदि अन्त पायो नहिं जानी॥

पालन उत्पति परलै ठानी। सर्वेश्वर सब गुनन के दानी॥

वेद शास्त्र चारों युग बानी। दु:ख सु:ख तजि होहु अमानी।२०।

 

पद:-

करा दो भोजन पिला दो पानी यही दया की बड़ी निशानी।१।

इसी को वहँ पर लिखैं बखानी जो हम यहाँ पर कहैं जबानी।२।

कटैगी जियतै नरक निशानी चलाते यहँ पर जो पाप घानी।३।

देवैंगे हरि पुर दया के दानी कहैं यह अंधे अटल है बानी।४।

 

दोहा:-

केपि खुलैं दुजनी खुलैं तब वह भक्त कहाय।

अंधे कह सो धन्य है सुर मुनि करैं बड़ाय॥

 

चौपाई:-

सतगुरु चरनन में चित्त जोरे।भर्म का भाड़ा जियतै फोरे।१।

ऐसे भक्त जक्त में थोरे। जो हरि नाम रूप रंग बोरे।२।

जे अधरम रस पीते घोरे। तिनको जम गण नर्क में बोरे।३।

अंधे बिनय करैं कर जोरे। जे चेते सिया राम के ढोरे।४।

 

पद:-

जागो जागो लोग लुगाई अंधा बिनवै शीश नवाई।

सतगुरु करो भजन बिधि जानो त्यागो जग औंघाई।

मातु पिता भगनी सुत लड़की नारि पती औ भाई।

नाते दार मित्र पुर के जन कोई संग न जाई।

तव तन निरखैं रहि रहि बिलखैं रोवैं मुँह फैलाई।५।

 

मानुष तन दुर्लभ प्रभु दीन्ह्यो तिनको दिह्यौ भुलाई।

चित्र गुप्त जब लेखा ले हैं मुख से बोल न आई।

जो बीती सो बीति गई अब सुमिरो तन मन लाई।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छाई।

अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ छूटै गर्भ झुलाई।१०।

 

दोहा:-

सुमिरन ऐसा कीजिये और न जानैं कोय; अंधे कह पर जांय।१।

खुलि आवागमन न होय संसय तो छूटा नहीं पढ़े संस्कृत जान।२।

अंधे कह जन्मै मरै मिले न ठीक ठेकान।३।

 

पद:-

पिता मेरे राम जी माता सीता मय्या। सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।

पिता मेरे श्याम जी माता राधे मय्या। सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।

पिता मेरे विष्णु जी माता रमा मय्या। सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।

पिता मेरे भोला नाथ माता उमा मय्या। सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।

पिता मेरे ब्रह्मा जी माता सारद मय्या।

सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।१०।

 

पिता मेरे सुर मुनि सबै सक्ती मय्या। सतगुरु कृपा से अंधा सुखपय्या॥ पिता मेरे सबै भक्त सबै भक्तिन मय्या।

सतगुरु कृपा से अंधा सुख पय्या।१४।

 

दोहा:-

राम नाम मन से जपै रसना मुख तन सुद्ध।१।

अंधे कह वह भक्त फिरि कभी न होय असुद्ध।२।

राम नाम मन से कहै पाप होय सब नास।३।

अंधे कह उस भक्त को माया सकै न फांस।४।

 

दोहा:-

जाप कंठ से की जिये रसना हिलै न नेक।

अंधेकह यह जायं खुलि कर्म लिखा दे छेंक॥

 

पद:-

जब ते दरस दिया राधे के पिया। रा़धे के पिया।

मुरली की धुनि रग रोवन में साली बीच हिया। राधे...।

मन अटको सूरति में प्रभु की ह्वैगो मस्त जिया। राधे...।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि जो सब का है बिया। राधे...।

जुगुल रूप अति ही प्रसन्न ह्वै झाँकी सन्मुख किया। राधे...।

कहैं सतगुरु करि जियतै तन फल लिया। राधे...।६।

जारी........