॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
नागिन चक्र कमल सब चेतैं महक उड़ैं क्या झीना।
अंधे कहैं त्यागि तन चलिये प्रभु गृह बैठक दीना।८।
पद:-
मुनाफा नाम में भारी जपै जो मन लगा करके।
करे सतगुरु बिधी पावै चोर तन से भगा करके।
देव मुनि आय कर भेटैं सुजस श्री हरि का गा करके।
रूप षट सामने राजैं तुम्हैं मानै सगा करके।
सुनो अनहद पियो अमृत गगन से नित मंगा करके।५।
उठै नागिनि सुधैं चक्कर कमल सब को जगा करके।
जियते निर्बैर निर्भय हो कर्म दोनो दगा करके।
कहैं अन्धे चलौ तन तजि भक्त निज रंग रंगा करके।८।
पद:-
जग जाल से फुरसत मिली नहीं तब भजन कहां वह ठीक भया।१।
मन चोर बासना संग लिये दोनों दिसि ते हा फीक भया।२।
सुर मुनि सब भक्त घिना करते मानो खानी की पीक भया।३।
अंधे कहैं तन तजि गया नर्क हौजन में पड़ि के हीक भया।४।
दोहा:-
पढ़त लिखत औ सुनत हैं गुनत धुनत हैं नाहिं।१।
अंधे कह कैसे तरैं नीक कहौ रिसियाहिं।२।
सतगुरु से जप भेद लै तन मन ते जुटि जाहिं।३।
अंधे कह जियतै तरैं फेरि न जग चकराहिं।४।
पद:-
मनुवाँ बड़ा बवाली बनिगा।१।
चोरन के संग पाप सिखत नित ऐसा उनको हिलिगा।२।
जीव की नेकौं बस न चलत है दुख चिंता में तलिगा।३।
अंधे कहैं मिलै जब सतगुरु तब संगै में मिलिगा।४।
पद:-
अशुभ कामौं के करने में यह मन दुशमन बड़ा चटका।
इसी से जीव को दुख है पड़ा भव जाल में भटका।
करै सतगुरु भजै ढंग से मिलै तब नाम का लटका।
ध्यान धुनि तेज लै होवै फ़टै तब भर्म का फटका।
मिलैं सुर मुनि सुनै अनहद पियै अमृत न कोइ खटका।५।
जगै नागिन नचैं चक्कर कमल सब फूलि हों टटका।
हर समय सामने देखो रूप क्या साँवरे नट का।
अधर पै है धरे मुरली बिहंसि के भौंह दे मटका।
कहत नहिं बन पड़ै भक्तों महा सुख का लगै घटका।
कहैं अंधे चलै तन तजि गर्भ में जाय नहिं पटका।१०।
दोहा:-
जो गुज्म रहस जाना चहौ सतगुरु से लो ज्ञान।
अंधे कह मन बस करो तब हो बै कल्यान॥
पद:-
भला मानुष जगत में सो भलाई में सदा रहेता।१।
कहैं अंधे सहै दुख नित कदम पीछे नहीं ढहेता।२।
चलै तन छोड़ि बैकुण्ठै सिंहासन बैठि सुख लहेता।३।
कर्म की भूमि है भक्तों उसे दोउ दिसि में सब चहेता।४।
पद:-
बुरा मानुष उसे जानो बुराई में सदा रहेता।१।
नछत्तर में पड़ा उसके यहां करना वही चहेता।२।
लिखा बिधि का कटै कैसे राम का नाम नहीं गहेता।३।
कहैं अंधे तजै तन जब जाय के नर्क में ढहेता।४।
पद:-
नाम में लागी सुरति जब जिनकी।१।
दरसैं सिया प्रभु देर न छिनकी।२।
लै परकास धुनी हो जारी वाकी छूटि गरभ के रिन की।३।
अँधे कहैं अंत निज पुर हो जै जै कार दोऊ दिसि उनकी।४।
जारी........