॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
पद:-
पहुँच होत श्री अवध में किनकी।१।
सतगुरु करि सुमिरत हरि तिनकी।२।
समै श्वांस तन बिरथा खोवत, बार बार जग भर में भिनकी।३।
अंधे कहैं परै जब नर्क में, रहि रहि आवैं दुख की पिनकी।४।
पद:-
फिरत घर घर में चालाकी। यही है पाप की काकी॥
चलाती हर समै चाकी। पीस कर जात है फांकी॥
चुकै किमि गर्भ की बाकी। हर समै संग में टांकी॥
करै सतगुरु सो ले आंकी। भगै सब चोर संग हांकी॥
धुनी जारी हो रा मा की। छटा सन्मुख में पितु मां की।१०।
उसे को गर्भ में ढाँकी। गया वह प्रेम में पाकी॥
देव मुनि जै कहैं वाकी। मगन आनन्द में छाकी॥
सुरति एक तार हो जाकी। वही यह खेलि है हाकी॥
कहैं अंधे बड़ी बांकी। धन्य जो हर समै ताकी।१८।
पद:-
सुरति जो शब्द में साटे। वही बिधि लेख को काटे।२।
भये सिय राम के बाटे। जांय नहिं नर्क में साटे।४।
गये कोटिन में हैं छांटे। छोड़ि तन अवध पुर आँटे।६।
कहैं अंधे नाके घाटे। परे माया के हैं चांटे।८।
पद:-
मन बच कर्म से जौन बहादर। होत नहीं है भक्तौं कादर।
सतगुरु की गहि बानि लियो है, दोनो दिशि वाको है आदर।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम, धुनि, ओढ़े प्रेम कि है चादर।
अंधे कहैं राम सिय सन्मुख, तन तजि नांघि गयो है छादर।
पांचों बूचड़ समय मारत कसि कसि अस्त्र।
अंधे कह सो बचि सकै जेहि ढिग नाम क वस्त्र।६।
पद:-
जे सुमिरन में रहत सचेत। तिन से करत प्रभू अति हेत।१।
सतगुरु करो जियति जाव चेत। हर दम ठीक रहैगी नेत।२।
नर तन बड़ा अमोल है खेत। राम नाम बोओ फल देत।३।
मन को धुनि संग जो ले रेत। अंधे कहैं शांति हों प्रेत।४।
पद:-
उड़ गया पंच्छी जहां से घोंसला खाली पड़ा।
कौन करता प्रेम उससे कह रहै सब है मरा।
देर गर कछु जाय ह्वै तो बोलते अब तो सड़ा।
दुगंर्धि की लहरैं उठैं चट फूंकि दो या दो गड़ा।
कर्म खोटे आप भोगै अन्त में सब को हड़ा।
अंधे कहैं इस समै पर कोई सूर बीर क पग अड़ा।६।
पद:-
चलै न पावै कूद ननोऊ। पढ़ि सुनि लिखि करते बतखाउ॥
आवत नहिं नेकहूँ भाउ। सतगुरु के ढिग याको दाँउ॥
जानि कै भक्तौं चट जुटि जाउ। लय परकास नाम धुनि पाउ॥
सन्मुख राम सिया छबि छाउ। नागिनि जगै चक्र घुमराउ॥
सारे कमलन उलटि खिलाउ। सुर मुनि मिलैं लिपटि उर लाउ।१०।
अनहद सुनि अमृत को खाउ। यह मसला कबीर कर गाउ॥
बिन जाने मति मूँह फैलाउ। यामे अनुभव का फैलाउ॥
ज्ञानी होवै उसे सुनाउ। अज्ञानी से करौ बराउ॥
जाके लागि जाय यह ताउ। सो ह्वै जाई रंक से राउ॥
अन्त छोड़ि तन निज पुर जाउ। अंधे कहैं न जग चकराउ।२०।
झमेला चोर करते हैं लिये संग मन को यह देखो।१।
करै क्या जीव डरि बैठा चलै कछु बस न यह देखो।२।
मिलै जब तक नहीं सतगुरु हरै को कष्ट यह देखो।३।
कहैं अंधे समै पर सब बनैगा काज यह देखो।४।
जारी........