२१ ॥ श्री नानक जी ॥
जारी........
सँतन की महिमा अगम, मेटि करम गति देहिं।
बचन प्रभू टारैं नहीं, पास आपने लेहिं ॥३॥
सँतन की सँगति करै, आवागमन नसाय ।
कह नानक मानो बचन, दीन्हों भेद बताय ॥४॥
गई पिपीलिका गगन तक, मीन समाधी कीन ।
सात स्वर्ग ऊपर विहँग, जाय के आसन लीन ॥५॥
सूरति लागै शब्द पर, तन मन प्रेम से जान ।
नानक ताको प्राप्त हों, चारों बिधि के ध्यान ॥६॥