२३२ ॥ श्री किलकिली शाह जी ॥
पद:-
लखौ मुरशिद लखौ मुरशिद लखौ मुरशिद की क्या झाँकी।
मनोहर है मनोहर है मनोहर है बड़ी बाँकी।
रहै सन्मुख रहै सन्मुख रहै सन्मुख सदा टाँकी।
खुले नैनन खुले नैनन खुले नैनन तुम्है ताकी।
न हो बरनन न हो बरनन न हो बरनन गती काकी।५।
शेष शारद शेष शारद शेष शारद गये थाकी।
ध्यान धुनि लो ध्यान धुनि लो ध्यान धुनि लो चलै चाकी।
नूर लय हो नूर लय हो नूर लय हो कर्म खाकी।
मिलैं सुर मुनि मिलैं सुर मुनि मिलैं सुर मुनि प्रेम पाकी।
पिओ अमृत पिओ अमृत पिओ अमृत सदा छाकी।१०।
सुनो अनहद सुनो अनहद सुनो अनहद न फिर ढाँकी।
चलो तन तजि चलो तन तजि चलो तन तजि आस फाँकी।१२।