२३१ ॥ श्री लाला खज्जन लाल जी ॥(२)
भजिये राम नाम बड़वानल।
सतुगुरु के चरनन की रज लै लीजै प्यारे दोउ नैनन मल।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होंय पाप सारे जावैं जल।
सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद बन्द न होत जौन एकौ पल।
श्यामा श्याम कि झाँकी सन्मुख रहै सदा होवै झल झल झल।५।
जियतै जो अभ्यास लेय करि ताके सब ह्वै जावै करतल।
यह तो देह सुरन को दुर्लभ सुमिरन ही नर तन का है फल।
शान्ति दीनता के बिन खज्जन कहैं होत नहिं शुभ कारज हल।८।