२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१२)
अर रर सन्तौं गुनौ कबीर॥
सूरति शब्द कि जाप से खुलते चारौं ध्यान॥
अंधे कह हर दम लखौ श्री सहित भगवान॥
भला जो भीतर है वह बाहेर है॥
पद:-
निर्गुण सर्गुण के परे मन बानी के पार॥
कारज कारन के परे सब में सब से न्यार॥
सब ईशों का ईश है जानै सो भव पार॥
अंधे कह सतगुरु करौ टूटै द्वैत किंवार॥