२४८ ॥ श्री दुगाना माई विसातिन जी ॥
पद:-
सँवलिया को तब हर समय देखना है।
जब दुविधा को तन मन से गहि फेंकना है।
श्री मुरशिद की बानी को लै टेकना है।३
धुनी ध्यान लय नूर में ठेकना है।
लिखा विधि का तब तो गुनो छेकना है।५।
ये अनुभव मुनी देव कह मेखना है।
सुना भी पढ़ा भी कि रँग रेख ना है।
यह बातैं हैं लय की सबी में सना है।
गरीबों के खातिर यह कूचा बना है।
चलै जांय बैठै फरक नेक ना है।१०।
झुकैं जे नहीं उनको जाना मना है।
दुगाना कहैं आहिनी का चना है।१२।