२४७ ॥ श्री शान्ती माई वनिनि जी ॥
पद:-
तन मन मेरा लुभाया घनश्याम तेरी बँसिया।
ऐसा कोई न पाया तुम तो बड़े हो रसिया।
एकी दफे सुनाया गले डालि प्रेम फँसिया।
करि देव मुझ पै दाया छूटै जगत कि फसिया।
यह वर मिलै मन भाया सुन लेव वृज के बसिया।५।
दिन चारि की है काया आवै न आवै सँसिया।
तेरी कठिन है माया कर लीन्हे द्वैत हँसिया।
चाहौ जिसे बचाओ लागै न नैकौ लसिया।८।