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२६३ ॥ श्री अमीर हसन खां ॥

(महमूदाबाद, सीतापुर)

२६३ ॥ श्री अमीर हसन खां ॥ (महमूदाबाद, सीतापुर)

 

शेर:-

लाह लिल्ला कहौ। और सबसे मिल कर के रहौ।१।

भिश्त गर लेना चहौ। अच्छी बुरी सब की सहौ।२।

रहम जीवों पर करो। काहे को दोज़ख तब परो।३।

 

अमीर हसन खां की बात मान जाओगे।

तो तन के अन्दर अपने पैगम्बर पाओगे॥

फातिमा हसन हुसेन का निवास है।

काबा व भिश्त सुन्दर घट में प्रकाश है॥

हर दम सुनोगे धुनि जो होती है लाह लाह।

सन्मुख खुदा क नूर कहोगे तो वाह वाह॥

झलकैगि श्याम सुन्दर कि बाँकी छबी कभी।

बस मस्त होगे देख कर बरनोगे क्या कभी॥

मुख के नहि हैं आँखै आँखो के मुख नहीं।

फिर अब भला बताओ कहने को को कही।५।

 

पहुँचोगे ध्यान में जब देखोगे तमाशा।

दुनियाँ के खेल से तब होओगे निराशा॥

लय में पहुँचिके भाई सुधि बुधि न कछु रही।

सूरति के साथ मन मिल सब साह ठग गही॥

मुरशिद से जान करके सुमिरन करोगे जब।

आँखै व कान प्यारे तुम्हरे खुलैंगे तब।८।