२७० ॥ श्री पण्डित पञ्चानन जी ॥
पद:-
जे जन बसैं सीता मढ़ी।
जाप बिधि सतगुरु से जानै असुर जावैं कढ़ी।
ध्यान धुनि परकाश लय हो जीति ले तब गढ़ी।
पियै अमृत सुनै अनहद देंय सुर मुनि बढ़ी।
दिब्य ग्रन्थन भवन हरि पुर देखि आवैं पढ़ी।५।
हर समय सन्मुख लखैं सिया सुभग यान पै चढ़ी।
तन मन कि करिकै एकता जे जियति लें सब लढ़ी।
अन्त तन तजि लेहिं निज पुर छोड़ि जग जिमि दढ़ी।८।