२६९ ॥ श्री मियां मक्खी चूस जी॥
पद:-
एकै परम्परा सब केरी।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो काहे करते देरी।
ध्यान धुनी परकाश दशा लय होय कटै दुख बेरी।
अनहद सुनो पिओ घट अमृत मिलैं देव मुनि टेरी
कमल खिलैं चक्कर सब बेधैं नागिनि जागै तेरी।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि रहे सामने हेरी।
सूरति शब्द क भजन सही है गुनो बिनय यह मेरी।
तन के असुर हारि सब बैठैं अजा जाय ह्वै चेरी।
मुद मंगल तब जियतै होवै बिजय कि बाजै भेरी।
अन्त त्यागि तन अचल धाम लो छूटै गर्भ कि फेरी।१०।
दोहा:-
सन्त क भेष बनाय के यहां कमाते पाप।
अन्त जाय कर नर्क में सहैं महा दुख ताप॥