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२८ ॥ श्री दादू जी ॥

जारी........

मन बानी के है परे, अमित भानु का तेज ।

सतगुरु जो किरपा करैं, देवैं छिन में भेज ॥९॥

मन को लीन्हेव जीत जिन, सोई इन्द्री जीत।

मन का सारा खेल है, सब इन्द्रिन को मीत ॥१०॥

मन स्थिर सतगुरु करैं, और करै नहिं कोय ।

देंय शब्द का भेद जब, ररंकार धुनि होय ॥११॥

भोजन थोड़ा कीजीये, बहुत बोल नहिं बोल ।

प्रेम पदारथ लीजिये, नाम रूप अनमोल ॥१२॥

दादू दुखिया क्या कहै, सुखिया सो ह्वै जाय ।

सतगुरु से उपदेश लै आँखिन देखै भाय ॥१३॥