२९२ ॥ श्री टीकाशाह जी ॥
थियेटर:-
आओजी आओ कृष्ण लाज के बचाने वाले।१।
स्वामी हो गिरधर प्यारे दुस्सासन चीर उतारे कोई न बरनन हारे,
बैठे सब राजदुलारे, लखि कै अनीति सारे हांसा करने वाले।२।
तुम्हारे भक्तों का हमने ना अपिमान देखा, सान औ गुमान अभिमान हू को खंडन देखा, चेरी मैं हूँ अब तेरी, लज्जा तू रख ले मेरी, काहे को करते देरी, केहरी ने गइया घेरी, हे जदुनंदन कंस निकंदन रावण गंजन, देवकी नंदन टीका के मन भाने वाले।३।
सखी से सखी कह रही है:-
पद:-
बाजी कहूँ बरिनि बिष भरी साति बाँसुरी
अधर मधुर धुनि नेक स्वरन सों।
वाकी गांस फांस जिय हूक कूक कूक तड़फाय सखीरी।
बाजी कहूँ बैरिनि बिष भरी सौति बांसुरी अधर मधुर धुनि
नेक स्वरन सों॥